देश की खबरें | ठाकरे ने बहुमत साबित करने से पहले इस्तीफा दिया, एमवीए सरकार को बहाल नहीं हो सकती: न्यायालय

नयी दिल्ली, 11 मई उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली तत्कालीन महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को बहाल नहीं कर सकता क्योंकि उन्होंने पिछले साल जून में शक्ति परीक्षण का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया था।

इस फैसले के साथ महाराष्ट्र सरकार पर मंडरा रहा खतरा टल गया है और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री के रूप में बने रहेंगे।

अदालत ने महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भी खिंचाई की और कहा कि उनके पास इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए ऐसी सामग्री नहीं थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया था।

शिवसेना में शिंदे गुट की बगावत के बाद तीन दलों वाली एमवीए सरकार के गिरने के कारण राजनीतिक संकट से संबंधित याचिकाओं पर सर्वसम्मति से फैसले में, प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा में शिंदे गुट के भरत गोगावले को शिवसेना के व्हिप के रूप में नियुक्त करने का तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष का निर्णय ‘‘कानून के विपरीत’’ था।

पीठ ने कहा, ‘‘सदन में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल का ठाकरे को बुलाना उचित नहीं था क्योंकि उनके पास मौजूद सामग्री से इस निष्कर्ष पर पहुंचने का कोई कारण नहीं था कि ठाकरे सदन में बहुमत खो चुके हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, पूर्व स्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया था।’’

पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘‘राज्यपाल के पास ऐसी कोई सामग्री नहीं थी जिसके आधार पर वह सरकार के भरोसे पर संदेह करते। जिस प्रस्ताव पर राज्यपाल ने भरोसा जताया, उसमें ऐसा कोई संकेत नहीं था कि विधायक एमवीए सरकार से बाहर निकलना चाहते हैं। कुछ विधायकों की ओर से असंतोष व्यक्त करने वाला पत्र राज्यपाल द्वारा शक्ति परीक्षण के आह्वान के लिए पर्याप्त नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि राज्यपाल को अपने सामने मौजूद पत्र (या किसी अन्य सामग्री) पर अपनी समझदारी दिखानी चाहिए थी ताकि यह आकलन किया जा सके कि सरकार ने सदन का विश्वास खो दिया है या नहीं।

अदालत ने कहा, ‘‘हम ‘राय’ शब्द का इस्तेमाल वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर संतुष्टि के लिए करते हैं कि क्या उनके पास प्रासंगिक सामग्री है, और इसका मतलब राज्यपाल की व्यक्तिपरक संतुष्टि से नहीं है। एक बार जब कोई सरकार कानून के अनुसार लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित होती है, तो यह माना जाता है कि उसे सदन का विश्वास प्राप्त है। इस धारणा को खत्म करने के लिए कुछ वस्तुनिष्ठ सामग्री मौजूद होनी चाहिए।’’

पीठ ने कहा कि विधायकों ने 21 जून, 2022 के प्रस्ताव में एमवीए सरकार से समर्थन वापस लेने की अपनी इच्छा व्यक्त नहीं की और यहां तक कि अगर यह मान भी लिया जाए कि वे सरकार से बाहर निकलने का इरादा रखते थे, तो उन्होंने शिवसेना विधानमंडल दल (एसएसएलपी) से अलग होकर केवल एक गुट का गठन किया तथा अपनी पार्टी के कदमों के प्रति अपने असंतोष का संकेत दे रहे थे।

पीठ ने कहा, ‘‘शिवसेना के भीतर मतभेदों के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ। हालांकि, शक्ति परीक्षण का इस्तेमाल आंतरिक पार्टी विवादों या अंतर-पार्टी विवादों को हल करने के माध्यम के रूप में नहीं किया जा सकता है।’’

पीठ ने कहा कि किसी राजनीतिक दल के भीतर ‘‘असंतोष और असहमति’’ को पार्टी संविधान के तहत निर्धारित उपायों के अनुसार या किसी अन्य तरीके से हल किया जाना चाहिए, जिसके लिए पार्टी अपने समक्ष विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती है।

अदालत ने कहा, ‘‘सरकार का समर्थन नहीं करने वाली पार्टी और पार्टी के भीतर के लोगों द्वारा अपने नेतृत्व और कामकाज के प्रति असंतोष व्यक्त करने के बीच एक स्पष्ट अंतर है।’’

पीठ ने कहा कि न तो संविधान और न ही संसद द्वारा बनाए गए कानून ऐसे किसी तंत्र का जिक्र करते हैं जिसके द्वारा किसी विशेष राजनीतिक दल के सदस्यों के बीच विवादों को सुलझाया जा सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘वे निश्चित रूप से राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में दखल देने और अंतर-दलीय विवादों या पार्टी के आंतरिक विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार नहीं देते हैं। राज्यपाल इस आधार पर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं कि उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि शिवसेना का एक वर्ग सदन के पटल पर सरकार से अपना समर्थन वापस लेना चाहता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, राज्यपाल ने एसएसएलपी विधायकों के एक गुट द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव पर भरोसा करके गलत निष्कर्ष निकाला कि ठाकरे ने सदन के बहुमत का समर्थन खो दिया है।’’

पीठ की ओर से 141 पन्नों का फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना राज्यपाल द्वारा उचित था। पीठ ने कहा, ‘‘29 जून, 2022 को ठाकरे के इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद रिक्त हो गया था। विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी (भाजपा) के नेता (देवेंद्र फडणवीस) ने शिंदे को पार्टी की ओर से समर्थन दिया। इस प्रकार, 30 जून, 2022 को शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का राज्यपाल का निर्णय उचित था।’’

शीर्ष अदालत ने व्हिप के सवाल पर भी विचार किया और कहा कि विधायक दल नहीं बल्कि राजनीतिक दल सदन में अपना व्हिप और नेता नियुक्त करता है।

पीठ ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को केवल किसी राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को मान्यता देनी चाहिए और इस मामले में, गोगावले को शिवसेना के मुख्य सचेतक के रूप में मान्यता देने का अध्यक्ष का निर्णय ‘‘अवैध’’ था क्योंकि यह एसएसएलपी के एक गुट के प्रस्ताव पर आधारित था। पीठ ने कहा कि इस बारे में शपथ पत्र भी नहीं दिया गया ताकि निर्धारित हो सके कि क्या यह राजनीतिक दल का निर्णय था।

शीर्ष अदालत ने विधायकों को अयोग्य करार देने के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार से जुड़े पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2016 के नबाम रेबिया फैसले को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को भी भेज दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस मुद्दे से संबंधित प्रश्न (और कोई भी संबद्ध मुद्दे जो उत्पन्न हो सकते हैं) को एक बड़ी पीठ के पास भेजते हैं: क्या विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिए प्रस्ताव पेश करने के इरादे का नोटिस जारी करना उन्हें संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर निर्णय लेने से रोकता है। इस मामले को उचित आदेश के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जा सकता है।’’

न्यायालय का 2016 का फैसला विधानसभा अध्यक्ष की शक्तियों से संबंधित है। न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि अगर विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की पूर्व सूचना सदन के समक्ष लंबित है तो वह विधायकों की अयोग्यता के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकते।

पीठ ने कहा कि किसी विधायक को अपनी अयोग्यता के लिए किसी भी याचिका के लंबित होने की परवाह किए बिना सदन की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है और सदन की कार्यवाही की वैधता इस तरह की अयोग्यता याचिकाओं के परिणाम के अधीन नहीं है।

शिवसेना विधायकों की अयोग्यता की कार्यवाही पर, पीठ ने कहा कि अदालत पहले मौके पर दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के लिए याचिकाओं पर फैसला नहीं कर सकती है और विधानसभा अध्यक्ष को उचित अवधि के भीतर याचिकाओं पर फैसला करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष और निर्वाचन आयोग को क्रमशः दसवीं अनुसूची के तहत और चुनाव चिह्न आदेश के प्रावधानों के तहत उनके समक्ष याचिकाओं पर समवर्ती निर्णय लेने का अधिकार है।

इस साल की शुरुआत में ठाकरे गुट को झटका देते हुए निर्वाचन आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना घोषित करते हुए पार्टी का धनुष-बाण चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया।

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