नयी दिल्ली, पांच जून उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस महामारी के बीच देश भर की जेलों में भीड़भाड़ कम करने से जुड़ी एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह इस बारे में कोई निर्देश जारी नहीं कर सकता है क्योंकि हर राज्य में स्थिति एक समान नहीं है।
शीर्ष न्यायालय ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी और उसे इस मुद्दे पर अधिकार क्षेत्र रखने वाले उच्च न्यायालयों का रुख करने की स्वतंत्रता दी।
उल्लेखनीय है कि 16 मार्च को शीर्ष न्यायालय ने देश भर की जेलों में क्षमता से काफी अधिक संख्या में कैदियों को रखे जाने पर स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि कोरोना वायरस से बचने के लिये जेल में कैदियों को आपस में दूरी बनाये रखना मुश्किल है।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह याचिका वीडियो कांफ्रेंस के जरिये सुनवाई के लिये आई थी।
पीठ ने कहा कि वह इस बारे में निर्देश जारी नहीं करेगी क्योंकि हर राज्य में स्थित एक समान नहीं है।
पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय भी शामिल थे।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के वकील अधिकार क्षेत्र वाले उच्च न्यायालयों का रुख करने की स्वतंत्रता के साथ यह याचिका वापस लेते हैं। (इस तरह) यह रिट याचिका वापस ली गई समझी जाती है।’’
याचिकाकर्ता एवं आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व प्रभारी निदेशक जगदीप एस छोकर की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायालय इस मुद्दे पर हर राज्य से स्थिति रिपोर्ट मांग सकता है।
भूषण ने दावा किया कि शीर्ष न्यायालय के आदेश के बावजूद छोटे-मोटे अपराधों में आरोपित व्यक्ति भी जेलों से रिहा नहीं किये जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि राज्यों को यह ब्योरा देने को कहा जाए कि कितनी संख्या में विचाराधीन कैदी रिहा किये गये हैं और कितने विचाराधीन कैदी बीमारियों से ग्रसित हैं।
पीठ ने कहा कि वह कोई एक सार्वभौम आदेश जारी नहीं कर सकती और इस मुद्दे पर अधिकार क्षेत्र वाली अदालतों को विचार करना होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘हम उच्च न्यायालय के विचार जानना चाहते हैं।’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)