नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने उसके समक्ष अपीलें दायर करने में सरकारी अधिकारियों द्वारा ‘अत्यधिक विलंब’ करने पर नाखुशी प्रकट की और कहा कि उन्हें ‘ न्यायिक वक्त बर्बाद करने को लेकर खामियाजा भरना चाहिए’ तथा ऐसी कीमत जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति एस के कौल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ऐसी जगह नहीं हो सकती है कि अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जायें।
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न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा, ‘‘ हमने मुद्दा उठाया है कि यदि सरकारी मशीनरी समय से अपील/याचिका दायर करने में इतनी नाकाबिल और असमर्थ है तो समाधान यह हो सकता है कि विधानमंडल से अनुरोध किया जाए कि अक्षमता के चलते सरकारी अधिकारियों के लिए अपील/याचिका दायर करने की अवधि बढ़ायी जाए। ’’
पीठ ने 663 दिनों की देरी के बाद मध्यप्रदेश द्वारा दायर की गयी अपील पर अपने आदेश में कहा, ‘‘(लेकिन) जब तक कानून है तब तक अपील/याचिका निर्धारित अवधि के अनुसार दायर करनी होगी।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि देरी के लिए क्षमा आवेदन में कहा गया है कि दस्तावेजों की अनुपलब्धता एवं उनके इंतजाम की प्रक्रिया के चलते देर हुई और यह भी कि ‘नौकरशाही प्रक्रिया कार्य में कुछ देर होती है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘ हम विस्तृत आदेश लिखने के लिए बाध्य हैं क्योंकि ऐसा जान पड़ता है कि सरकार और सरकारी अधिकारियों को दिये गये हमारे परामर्श का कोई फर्क नहीं पड़ा यानि उच्चतम न्यायालय कोई ऐसी जगह नहीं हो सकती है जहां अधिकारी कानून में निर्धारित समय सीमा की अनदेखी कर जब जी चाहे, आ जायें।’’
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