विदेश की खबरें | श्रीलंका के नए राष्ट्रपति कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्था को उबारने में कड़ी चुनौती का सामना कर रहे
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

लंदन, तीन अक्टूबर (द कन्वरसेशन), श्रीलंका में 21 सितंबर के दिन बहुत सी चीजें पहली बार हुईं। देश के अंतिम निर्वाचित राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को 2022 में पद से हटाने के लिए बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद देश में पहली बार हुए राष्ट्रपति चुनाव में लाखों लोगों ने मतदान किया।

श्रीलंका के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब कोई भी उम्मीदवार जीत के लिए जरूरी 50 फीसदी मत प्राप्त करने में असफल रहा और दूसरे चरण के लिए मतदान कराना पड़ा।

दूसरे चरण की मतगणना में श्रीलंका की दशकों की राजनीति को तगड़ा झटका लगा। श्रीलंका की जनता ने पहली बार ऐसे उम्मीदवार को चुना जो 1948 में स्वतंत्रता के बाद से देश की राजनीति पर हावी रहीं दो प्रमुख पार्टियों से नहीं था।

अनुरा कुमारा दिसानायके, श्रीलंका के नये राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए।

नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) गठबंधन की अगुवाई करने वाले दिसानायके की जनता विमुक्ति पेरुमुवा (जेवीपी) अपनी वामपंथी नीतियों के लिए जानी जाती है।

राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के तुरंत बाद दिसानायके ने तीन मंत्रियों के एक अंतरिम मंत्रिमंडल की नियुक्त की, जिसमें शिक्षाविद, नारीवादी और मानवाधिकार कार्यकर्ता हरिनी अमरसूर्या शामिल थीं।

अमरसूर्या को श्रीलंका के इतिहास में तीसरी महिला प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया।

दिसानायके ने इसके बाद 225 सदस्यीय संसद को भंग कर दिया और 14 नवंबर को संसदीय चुनाव कराने की घोषणा की।

संसद में एनपीपी गठबंधन के पास केवल तीन सीट थीं।

दिसानायके ने पूर्व में कहा था कि ‘ऐसी संसद को जारी रखने का कोई मतलब नहीं है जो लोगों की इच्छा के अनुरूप नहीं है’।

दिसानायके के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुंह बाये खड़ी है दरअसल श्रीलंका अपने ऋण का भुगतान करने में नाकाम रहा और 2022 में उसने विदेशी व घरेलू ऋणों का लगभग 78 अरब अमेरिकी डॉलर का भुगतान नहीं किया, जिससे देश के इतिहास में सबसे खराब आर्थिक संकट पैदा हो गया।

भले ही श्रीलंका की अर्थव्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही है लेकिन अब भी यह पतन के कगार पर नहीं पहुंची है। दिसानायके के सामने सबसे बड़ी चुनौती श्रीलंका की संघर्षरत अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की है और सबसे जरूरी बात यह है कि क्या वह ऐसा कर पाएंगे?

दिसानायके के सामने एक प्रमुख चुनौती अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लिये गये 2.9 अरब अमेरिकी डॉलर के राहत ऋण की शर्तों का प्रबंधन करना है। यह ऋण एक ऐसे विश्लेषण पर आधारित था, जो आर्थिक विकास के लिए अत्यधिक आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता था।

देश के अनिर्वाचित कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और उनके प्रशासन के बीच इस ऋण को लेकर 2023 में काफी विवाद हुआ और यह ऋण बेहद प्रतिकूल शर्तों के साथ लिया गया।

इन शर्तों में कठोर नियम, आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए उच्च मूल्य और घरेलू ऋण पुनर्गठन शामिल थे। इन नियमों से कामकाजी लोगों की सेवानिवृत्ति निधि अगले 16 वर्षों में अपने मूल्य की आधी हो जाएंगी।

ऋण में राहत की सुविधा, श्रीलंका द्वारा राजकोषीय लक्ष्यों के एक समूह को पूरा करने पर भी निर्भर हैं।

जिनमें 2032 तक अपने सार्वजनिक ऋण को सकल घरेलू उत्पाद के 95 फीसदी तक कम करना और मुद्रा कोष के कार्यक्रम समाप्त होने के बाद अपने बाहरी ऋण की सेवा पर सालाना सकल घरेलू उत्पाद का 4.5 फीसदी खर्च करना शामिल है।

इसका मतलब यह है कि सरकार के कुल राजस्व का 30 फीसदी ऋण की सेवा पर खर्च हो रहा है, जो देश के सीमित संसाधनों पर एक विशाल बोझ है।

आगे क्या?

विक्रमसिंघे ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में एक घोषणा की थी कि देश के कुछ बाहरी ऋणों के पुनर्गठन के लिए अंतरराष्ट्रीय बॉण्डधारकों के साथ एक मसौदा सौदा किया गया था। इस सौदे में नये बॉण्ड जारी करना शामिल है, जो देश के बेहतर होते आर्थिक हालात पर नजर रखने के लिए था।

कुछ विशेषज्ञों को डर है कि ये बॉण्ड इस दशक के अंत तक श्रीलंका को फिर से ऋण संकट में डाल सकते हैं।

दिसानायके को सबसे पहले इन बॉण्डधारकों के साथ समझौते पर जल्दबाजी में सहमत होने से बचना चाहिए। लेकिन वह नये ऋण के बिना विकास कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं? और महत्वपूर्ण बात यह है कि देश में समान रूप से विकास कैसै किया जा सकता है?

राष्ट्रपति प्रचार अभियान के दौरान एनपीपी ने श्रीलंका के बाहरी ऋण के पुनर्गठन में आईएमएफ की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया और दिसानायके को आईएमएफ द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता के मापदंडों पर फिर से बातचीत करने के लिए उसके साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी।

हालांकि, अगर बातचीत आगे बढ़ती है तो अगली किस्त प्राप्त करने में संभवत: देरी हो सकती है।

नये मानदंडों को ध्यान में रखना जरूरी है और इस नए ढांचे में सामाजिक सुरक्षा को बढ़ाया जाना चाहिए और सार्वजनिक प्रावधानों पर अधिक खर्च के लिए भत्ते शामिल होने चाहिए।

श्रीलंका की जनता यथास्थिति में बदलाव पर जोर दे रही है। अगर श्रीलंका की जनता आगामी आम चुनावों में दिसानायके और एनपीपी का समर्थन करती है तो आईएमएफ को उनकी बात सुननी पड़ सकती है। देश में बदलाव की हवा आखिरकार चलने लगी है।

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