इंदौर (मध्यप्रदेश), छह जनवरी इंदौर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने खासकर तटीय क्षेत्रों और दूर-दराज के इलाकों में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से खारे पानी को मीठे पानी में बदलने वाली किफायती तकनीक विकसित की है। आईआईटी इंदौर के एक अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी।
अधिकारी ने बताया कि आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर रूपेश देवन के नेतृत्व वाले अनुसंधान दल ने "इंटरफेशियल सोलर स्टीम जनरेशन" (आईएसएसजी) तकनीक से खारे पानी को मीठे पानी में बदलने में कामयाबी हासिल की है।
उन्होंने बताया कि यह पर्यावरण हितैषी तकनीक खारे पानी को शुद्ध करने के लिए ऐसे उन्नत ‘‘फोटोथर्मल’’ पदार्थों का इस्तेमाल करती है जो सूर्य के प्रकाश को ऊष्मा में बदल देते हैं और इस ऊष्मा का इस्तेमाल खारे पानी को गर्म करने में किया जाता है।
आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी ने बताया,‘‘सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर ये ‘फोटोथर्मल’ पदार्थ आईएसएसजी तकनीक के कारण तेजी से गर्म हो जाते हैं। इस ऊष्मा से खारे पानी का वाष्पीकरण हो जाता है और इसमें मौजूद लवण और प्रदूषक तत्व अलग हो जाते हैं। इसके बाद भाप शुद्ध पानी में बदल जाती है।’’
उन्होंने कहा कि "रिवर्स ऑस्मोसिस" जैसी पारंपरिक प्रक्रियाओं से खारे पानी को मीठे पानी में बदलने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है, जबकि आईआईटी इंदौर की ईजाद आईएसएसजी तकनीक यह काम बेहद कम ऊर्जा के इस्तेमाल से कर देती है।
देवन की अगुवाई वाले अनुसंधान दल ने कार्बन-आधारित पारंपरिक "फोटोथर्मल" सामग्री की मौजूदा चुनौतियों को दूर करने के लिए मेटल ऑक्साइड और कार्बाइड पदार्थों का उपयोग करके विशेष स्याही भी विकसित की है।
देवन ने बताया,"मेटल ऑक्साइड आधारित स्याही का उपयोग करके हमने उच्च वाष्पीकरण दर हासिल की जो व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए आवश्यक है।"
हर्ष
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)