देश की खबरें | शाही ईदगाह: शीर्ष अदालत ने मुस्लिम पक्षकारों से पूछा, क्या खंडपीठ में याचिका दायर की जा सकती है

नयी दिल्ली, 17 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को मुस्लिम पक्षकारों से यह बताने को कहा कि क्या एकल-न्यायाधीश के उस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर की जा सकती है, जिसके तहत मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से संबंधित 18 मामलों के सुनवाई योग्य होने के खिलाफ उनकी अर्जी खारिज कर दी गई थी।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ शुरू में उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दायर याचिका पर हिंदू पक्षकारों को नोटिस जारी करने की इच्छुक थी। हालांकि, बाद में उसने मामले को चार नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

हिंदू पक्ष की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील माधवी दीवान और विष्णु शंकर जैन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी और ईदगाह परिसर के सर्वेक्षण के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था और अब इसे खाली कर दिया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा कि इस मामले में कई कानूनी पेच हैं, जिन पर गहन विचार किए जाने की जरूरत है। उसने निर्देश दिया कि विवाद से जुड़े सभी लंबित मामलों पर एक साथ सुनवाई की जाएगी।

हिंदू पक्ष के एक वकील ने शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर करने पर आपत्ति जताते हुए दलील दी कि एक अगस्त के आदेश को उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।

दलील से सहमति जताते हुए पीठ ने शाही मस्जिद ईदगाह की कमेटी ऑफ मैनेजमेंट ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता तस्नीम अहमदी से अदालत को यह बताने को कहा कि क्या वे उच्च न्यायालय की एकल पीठ के एक अगस्त के आदेश के खिलाफ उसकी खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर कर सकते हैं।

पीठ ने कहा, “हमें लगता है कि आप (मुस्लिम पक्ष) ऐसा कर सकते हैं। इस अदालत के कुछ आदेश हैं, जो आपको ऐसा करने की अनुमति देते हैं। अगर आप ऐसा कर सकते हैं तो इस याचिका को वापस लिए जाने की जरूरत है।”

एक अगस्त को उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मथुरा में मंदिर-मस्जिद विवाद से संबंधित 18 मामलों की स्वीकार्यता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। पीठ ने फैसला सुनाया था कि शाही ईदगाह के “धार्मिक चरित्र” को निर्धारित करने की जरूरत है।

उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की इस दलील को ठुकरा दिया था कि कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद परिसर से जुड़े विवाद को लेकर हिंदू पक्षकारों की ओर से दायर मुकदमे पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उल्लंघन करते हैं, इसलिए ये सुनवाई योग्य नहीं हैं।

वर्ष 1991 में लागू यह अधिनियम देश की आजादी के दिन मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है। केवल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था।

हिंदू पक्ष की ओर से दायर मुकदमों में औरंगजेब-युग की मस्जिद को यह कहते हुए “हटाने” का अनुरोध किया गया है कि इसे एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया था।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि 1991 का अधिनियम “धार्मिक चरित्र” शब्द को परिभाषित नहीं करता है और “विवादित” स्थान का दोहरा धार्मिक चरित्र-एक मंदिर और एक मस्जिद, नहीं हो सकता है, जो “एक-दूसरे के प्रतिकूल” हैं।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मयंक कुमार जैन ने कहा था, “यह स्थान या तो मंदिर है या मस्जिद। इस तरह, मुझे लगता है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद विवादित स्थान का धार्मिक चरित्र दोनों पक्षों द्वारा पेश दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए।”

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