देश की खबरें | न्यायालय से मायावती को राहत, उप्र में अपनी मूर्तियों की स्थापना के खिलाफ 2009 की याचिका का निपटारा

नयी दिल्ली, 15 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती को बड़ी राहत देते हुए 2009 में दायर उस याचिका का बुधवार को निपटारा कर दिया, जिसमें उनके मुख्यमंत्रित्व काल में कथित तौर पर हाथियों की मूर्तियां स्थापित करने और व्यक्तिगत महिमामंडन पर उत्तर प्रदेश सरकार के बजट से 2,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जाने की जांच की मांग की गई थी।

यह आदेश ऐसे दिन आया है, जब मायावती का जन्मदिन है। वह आज 69 वर्ष की हो गईं।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने दो वकीलों- रविकांत और सुकुमार- की ओर से दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि अधिकांश प्रार्थनाएं निष्फल हो गई हैं।

पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग (ईसी) ने इस मुद्दे पर पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं और मूर्तियों की स्थापना पर रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि वे पहले ही स्थापित की जा चुकी हैं।

जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि मायावती के मुख्यमंत्री रहते 2008-09 और 2009-10 के राज्य बजट से कुल 2,000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल बसपा सुप्रीमो और पार्टी के चुनाव चिह्न (हाथी) की मूर्तियों को अलग-अलग जगहों पर स्थापित करने के लिए किया गया था।

वकील प्रकाश कुमार सिंह के जरिये दायर याचिका में दावा किया गया था कि 52.2 करोड़ रुपये की लागत से 60 हाथी की मूर्तियों की स्थापना न केवल जनता के पैसे की बर्बादी है, बल्कि निर्वाचन आयोग द्वारा जारी परिपत्रों के भी विपरीत है।

मायावती ने दो अप्रैल, 2019 को अपने फैसले को सही ठहराया था और शीर्ष अदालत को बताया था कि राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर उनकी आदमकद मूर्तियों और पार्टी के चुनाव चिह्न ‘हाथी’ का निर्माण ‘‘लोगों की इच्छा’’ का प्रतिनिधित्व करता है।

उन्होंने अदालत को बताया था कि कांग्रेस ने भी अतीत में देश भर में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी वी नरसिम्हा राव सहित अपने नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित की थीं।

उन्होंने राज्य सरकारों द्वारा प्रतिमाएं स्थापित करने के हालिया उदाहरणों का भी उल्लेख किया था, जिसमें गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा शामिल है, जिसे "स्टैच्यू ऑफ यूनिटी" के रूप में जाना जाता है।

इसके अलावा, बसपा सुप्रीमो ने कहा था कि भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी खजाने से अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची प्रतिमा का निर्माण किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार, स्मारकों का निर्माण और प्रतिमाओं की स्थापना भारत में कोई नई घटना नहीं है।’’

उन्होंने अदालत में दायर हलफनामे में कहा, ‘‘इसी तरह, केंद्र और राज्यों में सत्ता में रहने वाले अन्य राजनीतिक दलों ने भी समय-समय पर सरकारी खजाने से सार्वजनिक स्थानों पर विभिन्न अन्य नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित की हैं, लेकिन न तो मीडिया और न ही याचिकाकर्ताओं ने उनके संबंध में कोई सवाल उठाया है।’’

दलित नेता शीर्ष अदालत की ओर से जारी नोटिस और उसकी मौखिक टिप्पणियों का जवाब दे रही थीं।

शीर्ष अदालत ने आठ फरवरी, 2019 को कहा था कि मायावती को अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न की मूर्तियां बनवाने में इस्तेमाल की गयी सार्वजनिक राशि राज्य के खजाने में जमा करानी चाहिए।

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने उस याचिका को खारिज करने की मांग की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया गया है।

उन्होंने कहा कि यह "राजनीति से प्रेरित" याचिका है और अदालत की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है।

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