देश की खबरें | चुनाव नियमों में हालिया संशोधन मतदाताओं की निजता की रक्षा के लिए: सीईसी

नयी दिल्ली, सात जनवरी मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक निरीक्षण से प्रतिबंधित करने वाले चुनाव नियमों में हालिया संशोधन का मंगलवार को बचाव करते हुए कहा कि यह मतदाताओं की निजता की रक्षा करने और डेटा के दुरुपयोग के जरिए फर्जी विमर्श गढ़ने के प्रयासों को रोकने के लिए है।

निर्वाचन आयोग की सिफारिश के आधार पर सरकार ने पिछले महीने एक चुनाव नियम में बदलाव किया था ताकि मतदान केंद्रों के सीसीटीवी कैमरा फुटेज जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज का सार्वजनिक निरीक्षण रोका जा सके ताकि कोई इनका दुरुपयोग ना कर सके।

चुनाव आचार संहिता 1961 में बदलाव पर अपनी पहली टिप्पणी में कुमार ने कहा कि मतदान केंद्रों के अंदर और बाहर से केवल सीसीटीवी फुटेज साझा करने पर रोक लगाई गई है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा के लिए यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस तरह के डेटा या फुटेज को 2024 में निर्वाचन आयोग के निर्देशों के माध्यम से सार्वजनिक निरीक्षण के लिए प्रतिबंधित किया गया था।

उन्होंने कहा कि चुनाव संचालन के नियम 93 के तहत जिन दस्तावेज की अनुमति है, वे उपलब्ध रहेंगे।

कुछ दस्तावेज जिन्हें साझा करने पर पहले से ही पाबंदी है, वे चुनाव अधिकारियों द्वारा भरे गए फॉर्म होते हैं, जिनमें मतदाता का नाम और मतदान से पहले उनके द्वारा दिखाई गई पहचान का उल्लेख होता है।

कुमार ने कहा कि मतदाताओं की पहचान के साथ-साथ उनकी विस्तृत जानकारी की रक्षा के लिए नियमों में संशोधन किया गया है। उन्होंने कहा कि अगर फुटेज सार्वजनिक किया जाता है तो मतदान करने वालों और नहीं करने वालों की पहचान उजागर की जाएगी और यह निजता के नियमों का उल्लंघन है।

उन्होंने कहा कि अगर 10.5 लाख मतदान केंद्रों के फुटेज दिए जाएं, जहां माना जाए कि मतदान 10 घंटे के लिए होता है, तो इसका मतलब एक करोड़ घंटे का डेटा होगा। उन्होंने कहा, ‘‘अगर एक व्यक्ति द्वारा इसे रोजाना आठ घंटे देखा जाए तो रिकॉर्डिंग को देखने के लिए 3,600 साल लगेंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वह ऐसा क्यों चाहता है? हमें यह सवाल उस व्यक्ति से पूछना चाहिए जो यह चाहता है।’’

कुमार ने कहा कि चुनाव प्राधिकरण के पास यह साबित करने के लिए उदाहरण हैं कि डेटा का उपयोग मशीन लर्निंग और एआई का उपयोग नैरेटिव बनाने के लिए किया जाएगा।

मुख्य निर्वाच्न आयुक्त ने कहा कि फैक्ट चेकर्स भी यह पता नहीं लगा पाएंगे कि मतदान केंद्रों के एआई-जनरेटेड वीडियो फर्जी हैं या असली।

उन्होंने कहा कि जिन चीजों को प्रतिबंधित किया जाना है, उन्हें अभी नियमों में परिभाषित या निर्धारित किया जाना है।

केंद्रीय कानून मंत्रालय ने चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 (2) (ए) में संशोधन किया था ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले ‘दस्तावेज’ या कागजात के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके।

नियम 93 के अनुसार, चुनाव से संबंधित सभी ‘कागजात’ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होंगे। संशोधन में ‘कागजात’ के बाद ‘जैसा कि इन नियमों में निर्दिष्ट है’ शामिल किया गया है।

विधि मंत्रालय और निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने अलग-अलग बताया कि संशोधन के पीछे एक अदालती मामला था।

यद्यपि नामांकन फार्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेज का उल्लेख चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, लेकिन आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज इसके दायरे में नहीं आते हैं।

निर्वाचन आयोग के एक पूर्व अधिकारी ने बताया, ‘‘चुनाव आचार संहिता के तहत मतदान केंद्रों की सीसीटीवी कवरेज और वेबकास्टिंग नहीं की जाती है, बल्कि यह निर्वाचन आयोग द्वारा समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए उठाए गए कदमों का परिणाम है।’’

निर्वाचन आयोग के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘‘ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां नियमों का हवाला देते हुए ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मांगे गए हैं। संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि केवल नियमों में उल्लेखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होंगे और कोई अन्य दस्तावेज जिसका नियमों में कोई संदर्भ नहीं है, उसकी सार्वजनिक निरीक्षण की अनुमति नहीं दी जाएगी।’’

निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने कहा कि मतदान केंद्रों के अंदर सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के दुरुपयोग से मतदान की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है।

उन्होंने यह भी कहा कि इस फुटेज का इस्तेमाल एआई का उपयोग करके फर्जी विमर्श गढ़ने के लिए किया जा सकता है।

एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, ‘‘फुटेज सहित ऐसी सभी सामग्री उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध है। संशोधन के बाद भी यह उनके लिए उपलब्ध होगी। लेकिन अन्य लोग ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्राप्त करने के लिए हमेशा अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।’’

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल में निर्वाचन आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित आवश्यक दस्तावेज की प्रतियां वकील महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।

प्राचा ने चुनाव संचालन से संबंधित वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा फुटेज और फॉर्म 17-सी की प्रतियों की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी।

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