जरुरी जानकारी | आरबीआई ने नीतिगत दर में कोई बदलाव नहीं किया, पर मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाया

मुंबई, छह अगस्त भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को उम्मीद के अनुरूप प्रमुख नीतिगत दर रेपो में कोई बदलाव नहीं किया और इसे रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर बरकरार रखा। वास्तव में, आरबीआई ने मुद्रास्फीति के लक्ष्य बढ़ाये जाने के बावजूद आर्थिक पुनरुद्धार को गति देने को महत्व दिया है।

इसके साथ, केन्द्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति के रुख को नरम बनाये रखने का भी फैसला किया।

छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने आम सहमति से रेपो दर को चार प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर बरकरार रखने का निर्णय किया। हालांकि, नरम रुख बनाये रखने के मामले में वोट विभाजित रहा और छह में से एक सदस्य इसके पक्ष में नहीं थे।

रेपो दर वह दर है जिस पर वाणिज्यक बैंक केंद्रीय बैंक से फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिये अल्पकालीन कर्ज लेते हैं।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने डिजिटल माध्यम से मौद्रिक नीति समीक्षा की जानकारी देते हुए कहा, ‘‘एमपीसी के सदस्यों ने आम सहमति से नीतिगत दर को चार प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय किया। समिति के छह में पांच सदस्यों ने आर्थिक वृद्धि को गति देने तथा मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अंतर्गत रखने के लिये जबतक जरूरत हो, मौद्रिक नीति रुख नरम बनाये रखने का फैसला किया है।’’ नरम रुख का मतलब है कि नीतिगत दर में फिलहाल वृद्धि की आशंका नहीं है।

समिति के सभी सदस्य अबतक आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिये आम सहमति के साथ नरम रुख पर फैसला कर रहे थे।

यह लगातार सातवां मौका है, जब रेपो दर के मामले में यथास्थिति बरकरार रखी गयी है। इससे पहले, आरबीआई ने कोविड-19 महामारी के बीच मांग बढ़ाने के इरादे से 22 मई, 2020 को नीतिगत दर में बदलाव किया था और वह इसे रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर ले आया था। उससे पहले, एमपीसी ने वृद्धि को समर्थन देने के लिये फरवरी, 2019 से रेपो दर में 2.5 प्रतिशत की कटौती की थी।

कोविड-महामारी की दूसरी लहर के कुछ कमजोर पड़ने के साथ केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 के लिये वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर के अनुमान को 9.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। लेकिन चालू वित्त वर्ष 2021-22 के लिये खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया जो पहले 5.1 प्रतिशत था।

महंगाई दर का यह अनुमान रिजर्व बैंक को दिये गये 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखने के लक्ष्य के करीब है। इसका मतलब है कि मानसून के बेहतर होने तथा खरीफ बुवाई अच्छी होने के बाद भी कीमतों पर दबाव फिलहाल जाने वाला नहीं है।

आरबीआई के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जुलाई-सितंबर में 5.9 प्रतिशत रही। अगली तिमाही में कुछ नरमी आयी और यह 5.3 प्रतिशत रही। लेकिन जनवरी-मार्च में फिर से बढ़कर 5.8 प्रतिशत पहुंच गयी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के अगले वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही अप्रैल-जून में 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष की अगली कुछ तिमाहियों के लिये वृद्धि दर के अनुमान को घटाया है। लेकिन अप्रैल-जून के लिये अनुमान को बढ़ाकर 21.4 प्रतिशत कर दिया है।

विश्लेषकों का कहना है कि इसका कारण अनुकूल खरीफ फसल, बेहतर निर्यात की उम्मीद, टीकाकरण में लगातार प्रगति और अनुकूल मौद्रिक तथा राजकोषीय नीति के बावजूद खपत मांग में पुनरुद्धार की गति को लेकर चिंता हो सकती है।

अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि दर 17.2 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी गयी है।

आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘‘आपूर्ति पक्ष को लेकर जो समस्याएं हैं, वे अस्थायी हो सकती हैं। जबकि अर्थव्यवस्था में सुस्ती को देखते हुए मांग में नरमी बनी हुई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस समय अगर मौद्रिक नीति को लेकर कोई कदम उठाया जाता है तो जो शुरुआती पुनरुद्धार है, उस पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।’’

दास के अनुसार जो भी आंकड़े हैं, वे बता रहे हैं कि आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है, वह अस्थायी है। यह एमपीसी के निर्णय की पुष्टि करता है।

हाल के महीनों में आर्थिक वृद्धि में पुनरुद्धार के संकेत मिले हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की गिरावट के बाद चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में वृद्धि की उम्मीद है।

दास ने कहा कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिये पुनरुद्धार अभी संतुलित नहीं है और सभी नीति निर्माताओं से समर्थन की जरूरत है। ‘‘आरबीआई अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये जो भी जरूरत हो, चाहे वह मौद्रिक नीति हो या फिर नियामकीय...सभी प्रकार के कदम उठाने के लिये तैयार है।’’

वाहनों की बिक्री, बिजली मांग, टिकाऊ उपभोक्ता सामानों की बिक्री जैसे कुछ आंकड़ें ने कोविड से जुड़ी पाबंदियों में ढील के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी के संकेत दिये हैं। आरबीआई का मानना है कि इस समय आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना जरूरी है।

मौद्रिक नीति बयान में कहा, ‘‘हालांकि सरकार ने आपूर्ति बाधाओं को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन आपूर्ति-मांग संतुलन को बहाल करने के लिए इस दिशा में समन्वित प्रयास जरूरी हैं। राजकोषीय, मौद्रिक और अन्य नीतिगत उपायों के माध्यम से शुरुआती पुनरुद्धार को बढ़ावा देने की जरूरत है।’’

दास ने महामारी की तीसरी लहर को लेकर आगाह किया और आश्वस्त किया कि केंद्रीय बैंक सतर्क रुख बनाये रखेगा।

इसके अलावा, आरबीआई ने सदा सुलभ लक्षित दीर्घकालीन रेपो परिचालन कार्यक्रम (टीएलटीआरओ) तीन महीने 31 दिसंबर, 2021 तक बढ़ाने का निर्णय किया। इससे बैंक अधिक समय तक दबाव वाले क्षेत्रों को सस्ता कर्ज दे सकेंगे।

टीएलटीआरओ के तहत बैंक जरूरत वाले क्षेत्रों को कर्ज सुलभ कराने के लिये आवश्यकतानुसार नकदी प्राप्त कर सकते हैं। टीएलटीआरओ योजना की घोषणा नौ अक्टूबर, 2020 को की गयी थी। उस समय इसमें पांच क्षेत्रों को रखा गया था। बाद में इसमें दिसंबर 2020 में कामत समिति द्वारा चिन्हित दबाव वाले क्षेत्रों को शामिल किया गया। फरवरी 2021 में एनबीएफसी को दिये जाने वाले कर्ज को इसके अंतर्गत लाया गया।

इसके साथ, विदेशी मुद्रा में निर्यात कर्ज को लेकर दिशानिर्देश में संशोधन किया गया है। साथ ही महामारी से प्रभावित कंपनियों की मदद के लिये कर्ज पुनर्गठन के तहत क्षेत्र केंद्रित निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिये समयसीमा छह महीने के लिये बढ़ दी गयी है।

इसी प्रकार, आरबीआई ने सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) के तहत बैंकों के लिये छूट अवधि दिसंबर, 2021 तक बढ़ाने को मंजूरी दी है। केंद्रीय बैंक ने बैंकों को एमएसएफ के तहत कोष प्राप्त करने की अनुमति दी थी।

दास ने कहा कि सुविधा की अवधि बढ़ाये जाने से बैंकों को 1.62 लाख करोड़ रुपये तक के बढ़े हुए कोष तक पहुंच हो सकेगी।

इसके अलावा, नकदी बढ़ाने के उपायों के तहत आरबीआई सरकारी प्रतिभूति खरीद कार्यक्रम (जी-सैप) 2.0 के तहत दो चरणों में 50,000 करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियों का अधिग्रहण करेगा।

रिजर्व बैंक की अगली मौद्रिक नीति समीक्षा 6 से 8 अक्टूबर को होगी।

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