कोच्चि(केरल),15 जनवरी रोमन कैथोलिक बिशप फ्रैंको मुलक्कल को केरल के एक कान्वेंट में एक नन से बलात्कार के आरोपों से बरी करने वाली अदालत ने पीड़िता के बारे में कहा है कि विभिन्न समय पर अलग-अलग लोगों के समक्ष अलग-अलग बयान ने उसकी (नन की) विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किये हैं।
मुलक्कल को बरी करते हुए, कोट्टायम के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-प्रथम,गोपाकुमार जी. ने घटना के बारे में पीड़िता के बयानों में एकरूपता नहीं होने और अभियोजन के मामले को साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य के अभाव सहित विभिन्न कारणों का जिक्र किया।
न्यायाधीश ने 289 पन्नों के अपने फैसले में कहा कि पीड़िता का यह दावा कि उसके साथ 13 बार बलात्कार हुआ, इस पर उसकी एकमात्र गवाही के आधार पर यकीन नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पीड़िता, एक गवाह और अन्य का मोबाइल फोन अदालत के समक्ष पेश करने में नाकाम रहा, जबकि पूरा मामला आरोपी द्वारा पीड़िता को मोबाइल फोन पर भेजे गये कुछ अश्लील संदेशों के आधार पर बनाया गया था।
अदालत ने कहा, ‘‘कान्वेंट में उन्हें (बिशप को) टिके नहीं रहने देने के उसके (नन के) रुख के जवाब में आरोपी द्वारा कथित तौर पर पीड़िता को भेजे गये संदेश दोनों के बीच संबंध की प्रकृति को दर्शाते हैं। ’’
अदालत ने कहा कि आरोपी द्वारा नन को भेजे गये संदेश से किसी धमकी या भयादोहन का पता नहीं चलता है।
न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा, ‘‘पीड़िता द्वारा धारा 164 के दिये गये बयान के अनुसार आरोपी ने यह संदेश भेजा था कि, ‘‘तहे दिल से मैं तुम्हारे फैसले के साथ हूं।’ ‘मैं तुमसे मिलना चाहता हूं, मुझे तुम्हारी जरूरत है, मुझे फोन करो। ’ इन संदेशों से किसी धमकी, भयादोहन या बल प्रयोग का खुलासा नहीं होता है। ’’
अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी द्वारा अदालत में सौंपी गई कई तस्वीरों और वीडियो से यह प्रदर्शित होता है कि कथित यौन उत्पीड़न के बाद पीड़िता के आरोपी से करीबी संपर्क थे।
फैसले में कहा गया है कि दस्तावेजों से यह प्रदर्शित होता है कि पीड़िता ने आरोपी की कार में उसके साथ लंबी दूरी की यात्रा की थी और लगभग सभी दिन कई कार्यक्रमों में शरीक हुई थी, ‘कथित यौन हिंसा के कुछ दिनों बाद भी।’
अदालत ने कहा, ‘‘विभिन्न समय पर अलग-अलग लोगों के समक्ष अलग-अलग बयान, उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं।’’
मुलक्कल(57) पर, उनके रोमन कैथोलिक चर्चा के जालंधर डिकोसे के बिशप रहने के दौरान 2014 से 2016 के बीच इस जिले में एक कान्वेंट की यात्रा के दौरान नन से कई बार बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था। शिकायतकर्ता मिशनरिज ऑफ जीसस की सदस्य है जो जालंधर डिकोसे के तहत आती है।
अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि पीड़िता ने चिकित्सक के समक्ष अपने मूल बयान में कहा था कि उसने पहले कभी यौन संबंध नहीं बनाया था। अदालत ने कहा कि उसके बयानों में एकरूपता नहीं रहने के चलते उसे ठोस गवाह नहीं माना जा सकता है पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह भी नहीं कहा जा सकता।
इस बीच, विधिक समुदाय के एक वर्ग ने बिशप को बरी किये जाने के फैसले की आलोचना की और कहा कि यह फैसला पीड़िता के खिलाफ एक आरोपपत्र जान पड़ता है।
केरल विश्वविद्यालय में मीडिया लॉ के रिसर्च स्कॉलर श्याम देवराज ने कहा, ‘‘अदालत एक सकारात्मक तरीके से पीड़िता के अधिकारों पर गौर कर सकती थी। अदालत, पीड़िता द्वारा सामना की गई सीमाओं एवं पाबंदियों को समझ पाने में नाकाम रही। ऐसा लगता है कि अदालत ने पीड़िता की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया और आरोपी के बयान को आंख मूंद कर स्वीकार कर लिया। ’’
एक अन्य वकील ने कहा कि अदालत इस तथ्य को समझ पाने में नाकाम रही कि बिशप चर्च में एक आधिकारिक पद पर हैं। उन्होंने कहा, ‘‘न्यायाधीश ने फैसला लिखते वक्त, ननों के निरंतर निगरानी में रहने की स्थिति पर विचार नहीं किया, इसके बजाय अदालत ने यह निर्णय करने का विकल्प चुना कि अन्य गवाहों के प्रति आरोपी के पूर्व के व्यवहार इस मुकदमे में प्रासंगिक मुद्दा नहीं है।
उल्लेखनीय है कि मुलक्कल ऐसे पहले भारतीय बिशप हैं जिन्हें बलात्कार के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
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