नयी दिल्ली, 28 अगस्त भारत में 2021 की तुलना में 2022 में सूक्ष्म कण प्रदूषण में 19.3 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई, जो बांग्लादेश के बाद दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी गिरावट है और इससे प्रत्येक नागरिक की जीवन प्रत्याशा में औसतन 51 दिन की वृद्धि हुई है। एक नयी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है।
‘यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो’ के ‘एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ की वार्षिक रिपोर्ट ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक 2024’ में यह भी कहा गया है कि यदि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वार्षिक पीएम 2.5 सांद्रता मानक पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर को पूरा करने में विफल रहता है, तो भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 3.6 वर्ष कम होने की आशंका है।
पीएम2.5 हवा में मौजूद छोटे प्रदूषक कण होते हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में प्रदूषक कणों के स्तर में गिरावट के लिए मुख्य रूप से अनुकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया है।
भारत में 2022 में पीएम2.5 सांद्रता करीब नौ माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी जो 2021 के मुकाबले 19.3 प्रतिशत कम है।
कण प्रदूषण में सबसे कम गिरावट पश्चिम बंगाल के पुरुलिया और बांकुड़ा जिलों में देखी गयी। इसके बाद धनबाद, पूर्वी पश्चिम सिंहभूम, पश्चिम मेदिनीपुर और बोकारो जिलों में इसमें गिरावट देखी गयी। इनमें से प्रत्येक जिले में पीएम2.5 सांद्रता 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक गिर गयी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र उत्तरी मैदानी इलाकों में 2021 के मुकाबले 2022 में कण प्रदूषण के स्तर में 17.2 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी।
‘ग्रीनपीस इंडिया’ के ‘कैम्पेन मैनेजर’ अविनाश चंचल ने कहा, ‘‘रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वायु प्रदूषण के स्तर में मामूली कमी से भी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो सकती है। निम्न स्तर का वायु प्रदूषण भी जीवन को काफी कम कर देता है और लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर भारत के प्रमुख कार्यक्रम, ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (एनसीएपी) के तहत आने वाले शहरों में पीएम2.5 सांद्रता में औसतन 19 प्रतिशत की गिरावट देखी गई जबकि जो जिले इस कार्यक्रम के तहत नहीं आते थे, उनमें 16 प्रतिशत की गिरावट देखी गयी।
इसमें भारत के स्वच्छ ईंधन कार्यक्रम ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि भारत में रिहायशी क्षेत्र में उत्सर्जन में कमी के लिए इस योजना को देशभर में लागू किए जाने को श्रेय दिया जा सकता है।
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