नयी दिल्ली, 10 जून दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को आयोजित होने वाली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की परास्नातक प्रवेश परीक्षा को स्थगित करने का आदेश जारी करने से मना कर दिया है।
अदालत ने कहा है कि 40,000 छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित कराने के वास्ते बड़े स्तर पर संसाधनों का इस्तेमाल किया गया है और कोविड-19 महामारी को देखते हुए सामाजिक दूरी का पालन और सेनेटाईज करने जैसे सुरक्षा के उपाय भी किए गए हैं।
न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने परीक्षा में बैठने वाले विभिन्न एमबीबीएस डॉक्टरों की याचिका खारिज कर दी।
याचिका में कहा गया था कि कोविड-19 के ढाई लाख से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और ऐसी स्थिति में परीक्षा कराना उचित नहीं होगा।
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अदालत ने मंगलवार को दिए गए और बुधवार को उपलब्ध कराए गए अपने आदेश में कहा, “यह स्पष्ट है कि अब आखिरी समय में परास्नातक प्रवेश परीक्षा को स्थगित करने का कोई ठोस कारण नहीं है। प्रतिवादी (एम्स) परीक्षा आयोजित कराने के वास्ते एहतियाती उपाय बरतने के लिए सभी दिशा निर्देशों, परामर्श और चिकित्सा नियमों का पालन करने को बाध्य है।”
याचिकाकर्ता-डॉक्टरों ने कहा कि 13 मई को एम्स ने परास्नातक प्रवेश परीक्षा कराने का नोटिस जारी किया।
इसके बाद एक जून को संस्थान ने परीक्षा की तारीख पांच जून से बदल कर 11 जून कर दी और अभ्यर्थियों को प्रवेश पत्र जारी कर दिए।
याचिका में कहा गया था कि कोविड-19 के मामले प्रतिदिन बढ़ रहे हैं और ऐसे समय में परीक्षा आयोजित करना गलत होगा।
याचिका में दावा किया गया था कि एम्स द्वारा अन्य चिकित्सा परीक्षाओं को जुलाई तक के लिए स्थगित किया गया है।
एम्स के वकील ने कहा कि परीक्षा कराने की अधिसूचना 16 जनवरी को जारी की गई थी और यह 250 केंद्रों पर आयोजित होगी जिसमें चालीस हजार अभ्यर्थी भाग लेंगे।
वकील ने कहा कि परीक्षा आयोजित कराने के लिए एम्स द्वारा बड़ी मात्रा में धन खर्च किया गया है और संसाधनों का उपयोग किया गया है।
उन्होंने अदालत में आश्वासन दिया कि परीक्षा के दौरान सामाजिक दूरी जैसे सभी एहतियाती उपाय किए जाएंगे।
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