देश की खबरें | पेरिस समझौता गंभीर खतरे में है: डब्ल्यूएमओ प्रमुख

नयी दिल्ली,14 जनवरी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने मंगलवार को कहा कि पेरिस समझौता गंभीर खतरे में है और दुनिया को 2025 को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने एवं नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने की रफ्तार तेज करने के वास्ते निर्णायक जलवायु कार्रवाई के वर्ष के रूप में चिन्हित करना चाहिए।

पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिस पर 2016 में हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि के दायरे में जलवायु परिवर्तन को सीमित करना, अनुकूलन और वित्त शामिल हैं।

भारत मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना के 150 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक समारोह में हिस्सा ले रहीं साउलो ने कहा कि यह आयोजन धरती के लिए महत्वपूर्ण क्षण में हो रहा है।

उन्होंने बताया कि 2024 भारत और विश्व स्तर पर भी अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा।

उन्होंने याद किया कि 2024 में भारत ने लंबे समय तक भीषण गर्मी का सामना किया, जिससे मानव स्वास्थ्य, कृषि, जल आपूर्ति और ऊर्जा आपूर्ति पर बहुत बुरा असर पड़ा।

साउलो ने कहा, ‘‘भारी मानसूनी बारिश ने व्यवधान पैदा किया और लोगों की जान गईं, जैसा कि हमने जुलाई में केरल में हुए दुखद भूस्खलन में देखा। हाल ही में, देश के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण चिंताजनक और खतरनाक स्तर पर पहुंच गया।’’

डब्ल्यूएमओ प्रमुख ने कहा कि 2024 ऐसा पहला कैलेंडर वर्ष बना, जिसका औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल के औसत तापमान से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पेरिस समझौता खत्म हो गया है।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेन्द्र सिंह की उपस्थिति में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं, यह बहुत गंभीर खतरे में है... हमें 2025 को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने की रफ्तार तेज करने के वास्ते निर्णायक जलवायु कार्रवाई के वर्ष के रूप में चिह्नित करना चाहिए।’’

डब्ल्यूएमओ के छह डेटासेट के समेकित विश्लेषण के अनुसार, वैश्विक औसत सतह तापमान 1850-1900 के औसत से 1.55 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी ने पिछले सप्ताह कहा कि इसका अर्थ यह है कि धरती ने पहली बार ऐसा कैलेंडर वर्ष देखा है, जिसमें वैश्विक औसत तापमान 1850-1900 की आधार रेखा से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक है। यह वह अवधि थी, जब जीवाश्म ईंधनों के जलने जैसी मानवीय गतिविधियों से जलवायु पर काफी असर पड़ना शुरू हो गया।

हालांकि, पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा का स्थायी उल्लंघन 20 या 30 वर्ष की अवधि में दीर्घकालिक तापमान वृद्धि को संदर्भित करता है।

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