नयी दिल्ली, 12 दिसंबर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बताया कि ‘एक देश, एक चुनाव’ पर परामर्श प्रक्रिया के दौरान 32 राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि 15 पार्टियों ने इस पर विरोध जताया।
कोविंद ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर अध्ययन करने वाली उच्च स्तरीय समिति का नेतृत्व किया है।
कोविंद ने पांच अक्टूबर को सातवें लाल बहादुर शास्त्री स्मारक व्याख्यान में एक साथ चुनाव पर कहा था कि इन 15 दलों में से कई ने अतीत में कभी न कभी एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का समर्थन किया था।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बृहस्पतिवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए विधेयकों को मंजूरी दे दी और मसौदा विधेयकों को मौजूदा शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है।
कोविंद ने कहा था, “हमारी परामर्श प्रक्रिया के दौरान 47 राजनीतिक दलों ने समिति के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत किए। इन 47 दलों में से 32 ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया। हालांकि, इन 15 दलों में से कई ने अतीत में कभी न कभी एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया है।”
राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इस प्रस्ताव का विरोध किया जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने इसका समर्थन किया।
कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने मार्च में राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
रिपोर्ट के मुताबिक, “47 राजनीतिक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 राजनीतिक दलों ने न केवल एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का समर्थन किया बल्कि दुर्लभ संसाधनों को बचाने, सामाजिक सद्भाव की रक्षा करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इसे अपनाने की वकालत भी की।”
रिपोर्ट में बताया गया, “एक साथ चुनाव कराने का विरोध करने वाले दलों ने आशंका जताई कि इसे अपनाने से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन हो सकता है, यह लोकतंत्र विरोधी और संघीय व्यवस्था के विरुद्ध हो सकता है, क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर डाल सकता है, राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व को बढ़ावा दे सकता है और इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार बन सकती है।”
रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस, ‘आप’ और माकपा ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह लोकतंत्र और संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करता है। बसपा ने इसका स्पष्ट रूप से विरोध नहीं किया लेकिन देश के बड़े क्षेत्रीय विस्तार और जनसंख्या के बारे में चिंताओं को उजागर किया, जो इस विधेयक के कार्यान्वयन को चुनौतीपूर्ण बना सकता है।
समाजवादी पार्टी (सपा) ने कहा कि अगर एक साथ चुनाव होते हैं, तो राज्य स्तरीय दल चुनावी रणनीति और खर्च के मामले में राष्ट्रीय दलों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे, जिससे इन दोनों दलों के बीच मतभेद बढ़ जाएगा।
राज्य की पार्टियों में एआईयूडीएफ, तृणमूल कांग्रेस (टीएमली), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक), नागा पीपुल्स फ्रंट और सपा ने प्रस्ताव का विरोध किया।
अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक), ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), अपना दल (सोनी लाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल (बीजद), लोक जनशक्ति पार्टी (आर), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने प्रस्ताव का समर्थन किया।
भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सहित अन्य दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
अन्य दलों में भाकपा-मार्क्सवादी/ लेनिनवादी (माले) लिबरेशन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) विरोध करने वालों में शामिल थे।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2019 में हुई एक सर्वदलीय बैठक में 19 राजनीतिक दलों ने भाग लिया था और एक साथ चुनाव कराने पर हुई चर्चा में 16 दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।
रिपोर्ट के मुताबिक, केवल तीन दलों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था।
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