प्रयागराज, 16 मई मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में बृहस्पतिवार को हिंदू पक्ष ने दलील दी कि विवादित संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में आज की तिथि तक सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड या ईदगाह की इंतेजामिया कमेटी ने कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया।
हिंदू पक्ष की ओर से यह भी कहा गया कि उस संपत्ति में उनके (सुन्नी बोर्ड एवं इंतेजामिया कमेटी) नाम कोई बिजली का बिल तक नहीं है और वे अवैध तरीके से बिजली का उपयोग कर रहे हैं। उसने कहा कि इस संबंध में बिजली विभाग द्वारा उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।
कुछ देर सुनवाई के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई की तिथि 20 मई, 2024 तय की। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत कर रही है।
इससे पूर्व बुधवार को मुस्लिम पक्ष की वकील तसलीमा अजीज अहमदी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कहा था कि उनके पक्ष ने 12 अक्टूबर, 1968 को एक समझौता किया था जिसकी पुष्टि 1974 में निर्णित एक दीवानी वाद में की गई।
उन्होंने कहा था कि एक समझौते को चुनौती देने की समय सीमा तीन वर्ष है, लेकिन वाद 2020 में दायर किया गया, इस तरह से मौजूदा वाद समय सीमा से बाधित है।
अहमदी ने दलील दी थी कि यह वाद शाही ईदगाह मस्जिद के ढांचे को हटाने के बाद कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए दायर किया गया है। उन्होंने कहा कि वाद में की गई प्रार्थना दर्शाती है कि वहां मस्जिद का ढांचा मौजूद है और उसका कब्जा प्रबंधन समिति के पास है।
हिंदू पक्ष ने दलील दी थी कि यह संपत्ति एक हजार साल से अधिक समय से भगवान कटरा केशव देव की है और सोलहवीं शताब्दी में भगवान कृष्ण के जन्म स्थल को ध्वस्त कर ईदगाह के तौर पर एक चबूतरे का निर्माण कराया गया था।
हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि 1968 में कथित समझौता कुछ और नहीं है, बल्कि सुन्नी सेंट्रल बोर्ड और इंतेजामिया कमेटी द्वारा की गई एक धोखाधड़ी है, इसलिए समय सीमा की बाध्यता यहां लागू नहीं होती है।
उसने दलील दी कि 1968 का कथित समझौता वादी के संज्ञान में 2020 में आया और संज्ञान में आने के तीन साल के भीतर यह वाद दायर किया गया है।
उसने कहा कि इसके अलावा, 12 अक्टूबर, 1968 को हुए समझौते में भगवान पक्षकार नहीं थे और साथ ही समझौता करने वाला श्री कृष्ण जन्म सेवा संस्थान ऐसा किसी तरह का समझौता करने के लिए अधिकृत नहीं था, बल्कि इस संस्थान का काम दैनिक गतिविधियों का संचालन करना था।
हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि यह वाद पोषणीय (सुनवाई योग्य) है और गैर पोषणीयता के संबंध में दाखिल आवेदन पर निर्णय साक्ष्यों को देखने के बाद ही किया जा सकता है।
राजेंद्र
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