नयी दिल्ली/तिरुवनंतपुरम, 30 अक्टूबर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने राज्य के 11 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के खिलाफ अपनी कार्रवाई का बचाव करते हुए रविवार को कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में केवल अपना संवैधानिक कर्तव्य निभा रहे हैं।
खान ने कहा कि उनके द्वारा उठाए गए कदमों के पीछे कोई ‘‘अन्य इरादा’’ या ‘‘विवाद’’ नहीं है, क्योंकि वह केवल शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून को लागू कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह ‘‘छोटे-छोटे झगड़ों’’ पर समय बर्बाद नहीं कर सकते।
शीर्ष अदालत ने 21 अक्टूबर को एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की कुलपति की नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार, राज्य द्वारा गठित खोज समिति को कुलपति पद के लिए इंजीनियरिंग विज्ञान क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोगों के बीच से कम से कम तीन उपयुक्त व्यक्तियों के एक पैनल की सिफारिश करनी चाहिए थी, लेकिन इसके बजाय उसने केवल एक ही नाम भेजा।
खान ने ‘वर्ल्ड मलयाली फेडरेशन’ द्वारा नयी दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि इसके अलावा शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि कुलपतियों की नियुक्ति से जुड़े यूजीसी के नियमों के मुताबिक खोज या चयन समिति में गैर-शैक्षणिक सदस्य नहीं होना चाहिए।
इसके अलावा, राज्यपाल ने कहा कि जहां उनके विचार से कुछ गलत या राज्य के लोगों के हितों के खिलाफ नजर आएगा और उनके पास यदि उस मामले में हस्तक्षेप की शक्ति नहीं होगी, तो वह इसे जनता के सामने लाएंगे।
उन्होंने कहा कि फिर जनता तय कर सकती है कि उन्हें क्या करना है।
खान ने उदाहरण देते हुए कहा कि केरल में मंत्रियों के पास अपने निजी कर्मचारियों में 25 लोगों को नियुक्त करने की शक्ति है, जो दो साल की सेवा पूरी करने पर आजीवन पेंशन के हकदार हो जाते हैं।
उन्होंने दावा किया कि हर दो साल के बाद 25 लोगों को नियुक्त किया जाता है और इस तरह से एक मंत्री के चार साल के कार्यकाल के दौरान 50 पार्टी कार्यकर्ता आजीवन पेंशन के हकदार हो जाते हैं।
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