
Nitish Kumar's Journey: पेरिस, एक सितंबर भले ही नितेश कुमार अब पैरालंपिक में सफलता हासिल करने के शिखर पर खड़े हों लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे थे और उनका हौसला टूटा हुआ था. नितेश जब 15 साल के थे तब उनकी जिंदगी में दुखद मोड़ आया और 2009 में विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया. बिस्तर पर पड़े रहने के कारण वह काफी निराशा हो चुके थे. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरा बचपन थोड़ा अलग रहा है। मैं फुटबॉल खेलता था और फिर यह दुर्घटना हो गई.
मुझे हमेशा के लिए खेल छोड़ना पड़ा और पढ़ाई में लग गया. लेकिन खेल फिर मेरी जिंदगी में वापस आ गए. ’’बैडमिंटन एसएल3 फाइनल में पहुंच चुके नितेश को आईआईटी-मंडी में पढ़ाई के दौरान उन्हें बैडमिंटन की जानकारी मिली और फिर यह खेल उनकी ताकत का स्रोत बन गया. साथी पैरा शटलर प्रमोद भगत की विनम्रता और स्टार क्रिकेटर विराट कोहली से प्रेरणा लेकर नितेश ने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू कर दिया. उन्होन कहा, ‘‘प्रमोद भैया (प्रमोद भगत) मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं. इसलिए नहीं कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं बल्कि इसलिए भी कि वे एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं. ’’ यह भी पढ़ें: Who is Jasdeep Singh Gill: कौन हैं जसदीप सिंह गिल? जिन्हें बनाया गया डेरा राधा स्वामी सत्संग ब्यास का नया उत्तराधिकारी; जानें उनके बारे में सब कुछ
उन्होंने कहा, ‘‘विराट कोहली ने जिस तरह से खुद को एक फिट एथलीट में बदला है, मैं इसलिए उनकी प्रशंसा करता हूं. अब वह इतने फिट और अनुशासित हैं. ’’नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी वर्दी पहनने की ख्वाहिश की थी. उन्होंने कहा, ‘‘मैं वर्दी का दीवाना था. मैं अपने पिता को उनकी वर्दी में देखता था और मैं या तो खेल में या सेना या नौसेना जैसी नौकरी में रहना चाहता था. ’’लेकिन दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया. पर पुणे में कृत्रिम अंग केंद्र की यात्रा ने नितेश का दृष्टिकोण बदल दिया.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)
Nitish Kumar's journey: बिस्तर पर पड़े रहने वाले किशोर से पैरालंपिक फाइनल तक का सफर
भले ही नितेश कुमार अब पैरालंपिक में सफलता हासिल करने के शिखर पर खड़े हों लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे थे और उनका हौसला टूटा हुआ था.
Nitish Kumar's Journey: पेरिस, एक सितंबर भले ही नितेश कुमार अब पैरालंपिक में सफलता हासिल करने के शिखर पर खड़े हों लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे थे और उनका हौसला टूटा हुआ था. नितेश जब 15 साल के थे तब उनकी जिंदगी में दुखद मोड़ आया और 2009 में विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया. बिस्तर पर पड़े रहने के कारण वह काफी निराशा हो चुके थे. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरा बचपन थोड़ा अलग रहा है। मैं फुटबॉल खेलता था और फिर यह दुर्घटना हो गई.
मुझे हमेशा के लिए खेल छोड़ना पड़ा और पढ़ाई में लग गया. लेकिन खेल फिर मेरी जिंदगी में वापस आ गए. ’’बैडमिंटन एसएल3 फाइनल में पहुंच चुके नितेश को आईआईटी-मंडी में पढ़ाई के दौरान उन्हें बैडमिंटन की जानकारी मिली और फिर यह खेल उनकी ताकत का स्रोत बन गया. साथी पैरा शटलर प्रमोद भगत की विनम्रता और स्टार क्रिकेटर विराट कोहली से प्रेरणा लेकर नितेश ने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू कर दिया. उन्होन कहा, ‘‘प्रमोद भैया (प्रमोद भगत) मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं. इसलिए नहीं कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं बल्कि इसलिए भी कि वे एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं. ’’ यह भी पढ़ें: Who is Jasdeep Singh Gill: कौन हैं जसदीप सिंह गिल? जिन्हें बनाया गया डेरा राधा स्वामी सत्संग ब्यास का नया उत्तराधिकारी; जानें उनके बारे में सब कुछ
उन्होंने कहा, ‘‘विराट कोहली ने जिस तरह से खुद को एक फिट एथलीट में बदला है, मैं इसलिए उनकी प्रशंसा करता हूं. अब वह इतने फिट और अनुशासित हैं. ’’नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी वर्दी पहनने की ख्वाहिश की थी. उन्होंने कहा, ‘‘मैं वर्दी का दीवाना था. मैं अपने पिता को उनकी वर्दी में देखता था और मैं या तो खेल में या सेना या नौसेना जैसी नौकरी में रहना चाहता था. ’’लेकिन दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया. पर पुणे में कृत्रिम अंग केंद्र की यात्रा ने नितेश का दृष्टिकोण बदल दिया.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)
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