बाकू (अजरबैजान), 19 नवंबर भारत ने मंगलवार को कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए नये जलवायु वित्त लक्ष्य को जलवायु न्याय के सिद्धांत के आधार पर तय किया जाना चाहिए।
भारत ने अमीर देशों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने में अग्रणी भूमिका निभाने और विकासशील देशों के लिए पर्याप्त ‘कार्बन स्पेस’ (कार्बन उत्सर्जन की गुंजाइश) सुनिश्चित करने का आह्वान भी किया।
बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी) में भारत की ओर से वक्तव्य देते हुए केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने कहा कि कुछ विकसित देशों के प्रतिबंधात्मक एकपक्षीय व्यापार उपाय विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई में बाधा डाल रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम यहां एनसीक्यूजी (नये जलवायु वित्त लक्ष्य) पर जो भी निर्णय लेते हैं, वे जलवायु न्याय के सिद्धांत पर आधारित होने चाहिए। निर्णय महत्वाकांक्षी और स्पष्ट होने चाहिए, जिनमें विकासशील देशों की उभरती जरूरतों और प्राथमिकताओं तथा सतत विकास एवं गरीबी उन्मूलन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।’’
मंत्री ने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ में जलवायु महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों की मुफ्त उपलब्धता और पर्याप्त वित्तीय सहयोग सुनिश्चित करना जरूरी है।
सिंह ने कहा, ‘‘इसके विपरीत, कुछ विकसित देशों ने एकतरफा उपायों का सहारा लिया है, जिससे ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए जलवायु कार्रवाई अधिक कठिन हो गई है। हम जिस स्थिति में हैं, उसमें ‘ग्लोबल साउथ’ में प्रौद्योगिकी, वित्त और क्षमता के प्रवाह के लिए सभी बाधाओं को दूर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’’
‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है, जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है और ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका में स्थित हैं।
सिंह ने कहा कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कार्बन बजट के इस दशक में खर्च हो जाने का अनुमान है।
उन्होंने विकसित देशों से अपने ‘नेट जीरो’ कार्बन लक्ष्यों को आगे बढ़ाकर और ‘‘भारत जैसे विकासशील देशों के लिए पर्याप्त कार्बन स्पेस प्रदान करके’’ इस दिशा में मिसाल कायम करने का आह्रवान किया।
भारत ने कहा कि ‘ग्लोबल नॉर्थ’ (विकसित देश) के उच्च-कार्बन उत्सर्जन ने ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए बहुत कम ‘कार्बन स्पेस’ छोड़ा है।
हालांकि, उसने कहा कि सतत विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए जरूरी बुनियादी चीजों से समझौता नहीं किया जा सकता है।
भारत बहुपक्षीय मंचों पर यूरोपीय संघ (ईयू) के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) जैसे एकतरफा व्यापार उपायों का विरोध करता रहा है। वह कहता आया है कि यह पद्धति जलवायु कार्रवाई की लागत गलत तरीके से गरीब देशों पर स्थानांतरित करती है।
सीबीएएम भारत और चीन जैसे देशों से आयातित लोहा, इस्पात, सीमेंट, उर्वरक और एल्यूमीनियम जैसे उत्पादों पर यूरोपीय संघ का प्रस्तावित कर है।
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