बर्लिन में बना उपनिवेशवाद-विरोधी संदेश देने वाला पहला मेमोरियल
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

‘अर्थनेस्ट’ नाम की एक कांस्य कलाकृति उपनिवेशवाद के प्रभाव को दूर करने के लिए इस पर बातचीत और पुरानी यादों को ताजा करने का एक नया मंच प्रदान करती है.जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हाल ही में उपनिवेशवाद विरोधी पहला स्मारक स्थल यानी मेमोरियल का उद्घाटन हुआ. ‘अर्थनेस्ट' नाम की इस कलाकृति को ‘द लॉकवर्ड कलेक्टिव' ने डिजाइन किया है और इसे बर्लिन ग्लोबल विलेज के सामने स्थापित किया गया है. यह सेंटर नॉएक्योल्न जिले में स्थित है. इस सेंटर में विकास नीति और प्रवासी-समुदायों से जुड़े करीब 50 संघों और संगठनों का कार्यालय है, जो वैश्विक न्याय, सस्टेनिबिलिटी और विविधता जैसे विभिन्न मुद्दों पर काम करते हैं.

औपनिवेशिकता विरोधी यह स्मारक 15 नवंबर से आम लोगों के लिए खोल दिया गया. इस तारीख का भी अपना ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि 140 साल पहले, 15 नवंबर, 1884 को बर्लिन सम्मेलन हुआ था जिसे ‘कांगो सम्मेलन' भी कहा जाता है. इस सम्मेलन ने अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन को हमेशा के लिए बदल दिया था.

इस सम्मेलन में, यूरोप की साम्राज्यवादी शक्तियां अफ्रीका के बंटवारे पर बातचीत करने के लिए इकट्ठा हुई थीं. 26 फरवरी, 1885 को एक सामान्य अधिनियम पर हस्ताक्षर के साथ यह सम्मेलन समाप्त हुआ, उपनिवेशवादियों ने अपने कब्जे के अधिकारों पर मुहर लगाई और महाद्वीप पर व्यापार के लिए अपने नियम बनाए.

यह स्मारक उसकी स्मृति का प्रतीक है. यह उपनिवेशवाद की हिंसा से पीड़ित लोगों या इलाकों का सम्मान करते हुए उनकी परेशानियों को खत्म करने और उनसे मेल-जोल बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा. यहां आने वाले लोगों को ऑडियो सीरीज के माध्यम से उन लोगों या समुदायों की कहानियों और अनुभवों को सुनाया जाएगा जो उपनिवेशवाद की पीड़ा को झेल चुके हैं.

स्मारक के डिजाइन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता

स्मारक का डिजाइन दुनिया भर से आए 244 प्रस्तावों में से चुना गया था. यह एक खुली और पहचान जाहिर न करने वाली कला प्रतियोगिता थी. इस कलाकृति को बनाने की प्रतियोगिता के साथ-साथ उपनिवेशवाद के उन्मूलन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एक व्यापक शैक्षिक कार्यक्रम भी चलाया गया.

जनवरी 2024 में, नाइजीरियाई कलाकार और कला इतिहासकार चिका ओकेके-अगुलु और कोलंबियाई कलाकार मारिया लिनारेस की अगुवाई वाली जूरी ने प्रतियोगिता में जीत हासिल करने वाली डिजाइन का चयन किया.

जीत हासिल करने वाली टीम ‘द लॉकवर्ड कलेक्टिव' में कलाकार जीनेट एहलर्स और पेट्रीसिया केर्सनहौट शामिल हैं. एहलर्स मूल रूप से त्रिनिदाद और डेनमार्क की हैं और कोपेनहेगन में रहती हैं. जबकि, केर्सनहौट सूरीनाम मूल की मल्टीमीडिया कलाकार हैं और एम्सटर्डम एवं फ्रांस में रहती हैं. उन्होंने सलाहकार रोलैंडो वाजक्वेज और तकनीकी सलाहकार मैक्स बेंटलर के साथ मिलकर काम किया.

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इन कलाकारों ने अपनी कांस्य प्रतिमा की संरचना को ‘एक सांप्रदायिक मंदिर' बताया है जो समुदायों को एक साथ लाने और यादों को संजोने में विश्वास करता है. साथ ही, उन सांस्कृतिक विरासतों, परंपराओं और पहचान को फिर से याद करने और सम्मानित करने में विश्वास करता है जो औपनिवेशिक शासन की वजह से नष्ट हो गए थे या कहीं खो गए थे.

कलाकृति के भूमिगत हिस्से में पूर्व उपनिवेशों की मिट्टी रखी गई है. कलाकारों ने बताया कि बैंगनी रंग से रोशन, ऊपर की ओर जाने वाला ढांचा ‘औपनिवेशिक काल के जख्म को भरने की शक्ति' का प्रतीक है.

उपनिवेशवाद को दूर करने की प्रक्रिया में राजनीतिक समर्थन

14 नवंबर को उद्घाटन समारोह के दौरान, जर्मन संस्कृति मंत्री क्लाउडिया रोथ ने स्मारक के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा, "यह स्मारक जर्मनी के अतीत में औपनिवेशिकता के असर और वर्तमान पर पड़ने वाले उसके परिणामों को समझने और उससे जुड़ी समस्याओं को हल करने में मदद करेगा. मुझे इस परियोजना का आर्थिक और वैचारिक रूप से समर्थन करने में खुशी हुई.” केंद्र सरकार ने प्रतियोगिता, मध्यस्थता कार्यक्रम और जनसंपर्क कार्य के लिए 7,50,000 यूरो का योगदान दिया है.

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बर्लिन के संस्कृति विभाग की राज्य मंत्री सारा वेडल-विल्सन ने कहा, "अर्थनेस्ट हमारे शहर में पुरानी बातों को याद रखने की नई संस्कृति का शक्तिशाली प्रतीक है. बर्लिन सार्वजनिक स्थान से उपनिवेशवाद को दूर करने में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है और हमें इस परियोजना का समर्थन करने पर गर्व है.” बर्लिन राज्य ने कलाकृति के निर्माण के लिए अलग से 7,50,000 यूरो दिया है.

बर्लिन ग्लोबल विलेज के बोर्ड की सदस्य अनिकोला फैमसन ने कहा, "यह एक जीवंत स्मारक है जो लोगों को एक साथ लाता है और उपनिवेशवाद-विरोधी बातचीत को बढ़ावा देता है. यह कलाकृति प्रवासी समुदायों के लिए भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. यह एक ऐसी जगह है जहां लोग अतीत और वर्तमान के बारे में गहराई से सोच सकते हैं. साथ ही, इससे यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा कि अमीर और गरीब देशों के बीच औपनिवेशिकता को खत्म करने का विषय बर्लिन में लंबे समय तक महत्वपूर्ण बना रहे.”