नयी दिल्ली, 28 मई. कोविड-19 लॉकडाउन से उत्पन्न प्रतिकूल स्थितियों के चलते अपने गांवों को लौटे मजदूरों की वापसी आसान नहीं रही और अब वे गांव में ही किसी ठीक-ठाक रोजगार की आस लगाए बैठे हैं. लाखों मजदूर अपने गांवों को लौट चुके हैं और लाखों अब भी लौट रहे हैं. हालात के मारे इन मजदूरों के पास अपनी-अपनी दर्दनाक दास्तान है. महामारी के चलते शहर में रोजगार छिनने के बाद गांव लौटने पर भी ये अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं.
कुछ का कहना है कि अब वे ज्यादा उम्र के हो चुके हैं तो कुछ का कहना है कि वे ज्यादा मेहनत वाला काम नहीं कर सकते. मई के प्रथम सप्ताह में दिल्ली से पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित अपने गांव पीलखाना जाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सीट पाने की जिद्दोजहद में लगे हरि कुमार भी हालात से जूझ रहे उन मजदूरों में से एक हैं जो नए जीवन में ढलने की कोशिश कर रहे हैं. यह भी पढ़े | पंजाब: शराब देने से इनकार करने पर गुस्साए लोगों ने दुकान के कर्मचारी को पीट-पीटकर मारा डाला, पुलिस जांच में जुटी.
दक्षिणी दिल्ली के नेहरू प्लेस कार्यालय परिसर में चाय की दुकान करने वाले 43 वर्षीय हरि कुमार के पास गांव में कृषि, पशुपालन तथा ग्रामीण निर्माण परियोजनाओं में मजदूरी करने जैसे विकल्प हैं, लेकिन वह इन कामों के लिए खुद को उपयुक्त नहीं पाते. उन्होंने कहा, ‘‘मैं चाय-नाश्ता बनाता था। मुझे यही काम आता है। मेरे पास कई विकल्प हैं, लेकिन मैं नहीं जानता कि तपती धूप और गर्मी में हर रोज 12 घंटे कैसे काम किया जाता है. मुझे नहीं पता कि मैं 20 से 30 साल तक की उम्र के बीच के लोगों से काम में कैसे मुकाबला कर पाऊंगा.’’
कुमार ने कहा कि उन्होंने 15 साल की उम्र में गांव छोड़ दिया था और लगभग 30 साल बाद अपने नए जीवन में ढलने के लिए उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. उन्होंने पीटीआई- से फोन पर कहा, ‘‘मैं घर की याद करते हुए कई रात रोता रहा। जब मैं लौटा तो मैं घर पर ही रहा और अपने बच्चों के साथ समय बिताया। अब दिन गुजरने के साथ मुझे महसूस हो रहा है कि मुझे यहां कोई काम ढूंढ़ना चाहिए, लेकिन यहां मेरा अनुभव मेरे काम नहीं आ सकता.’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)