प्रयागराज, 29 नवंबर: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि छोटे मोटे विवादों को तलाक कानून के तहत क्रूरता के तौर पर देखा जाने लगे तो इससे कई विवाहों के भंग होने का जोखिम हो जाएगा, भले ही पति या पत्नी द्वारा वास्तव में कोई क्रूरता नहीं की गई हो. न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने गाजियाबाद के रोहित चतुर्वेदी नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर यह टिप्पणी की. अपीलकर्ता ने गाजियाबाद की अदालत के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की थी.
अदालत ने सीधे तलाक की अर्जी मंजूर करने के बजाय पति पत्नी को न्यायिक व्यवस्था के तहत अलग रहने का निर्देश दिया. इस मामले में राहुल चतुर्वेदी ने 2013 में नेहा चतुर्वेदी से विवाह किया था. पति ने दलील दी कि उसकी पत्नी ने उसके माता पिता से झगड़ा किया और एक बार तो उसने उसे चोर कहते हुए भीड़ को उसका पीछा करने के लिए उकसाया और उसके खिलाफ दहेज का मामला भी दर्ज कराया.
पति ने दलील दी कि वह अपनी पत्नी के साथ जुलाई 2014 तक रहा, लेकिन उसके बाद वह साथ नहीं रहा. पति ने पत्नी द्वारा क्रूरता करने का हवाला देते हुए गाजियाबाद की परिवार अदालत में तलाक की अर्जी दायर की थी. इस बीच, पत्नी ने अपने पति पर अपनी बहन के साथ अवैध संबंध रखने का आरोप लगाया. परिवार अदालत द्वारा तलाक की अर्जी नामंजूर करने के बाद पति ने उच्च न्यायालय में इस निर्णय के खिलाफ अपील की.
उच्च न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक क्रूरता सिद्ध करने के लिए कृत्य इतना गंभीर होना चाहिए जिसमें सुलह की कोई गुंजाइश ना हो. अदालत ने पाया कि पत्नी ने अपने पति पर केवल इस आधार पर अवैध संबंध का आरोप लगाया है कि उसके पति ने अपनी साली और उसके बच्चों के साथ एक ही कमरे में रात बिताई थी. अदालत ने कहा कि अकेले इस पहलू के आधार पर अवैध संबंध कहना न्यायोचित नहीं होगा.
पीठ ने पाया कि इस दंपति के बीच गंभीर विवाद है जिसे दूर करने की बहुत कम गुंजाइश है, इसलिए मौजूदा चरण पर पति पत्नी को अलग रहने की अनुमति दी जाती है. इस प्रकार से अदालत ने अपीलकर्ता पति को न्यायिक व्यवस्था के तहत पत्नी से अलग रहने की अनुमति प्रदान की.
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