तिरूवनंतपुरम, 20 अगस्त: केरल की पौराणिक कथाओं के अनुसार असुर राज महाबली ने हर साल वार्षिक ‘तिरू ओणम’ दिवस पर अपनी प्रजा से मिलने का भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था. उत्तरी केरल के मालाबार क्षेत्र में महाबली वास्तव में ओणम के अवसर पर उसी तरह के वेशभूषा वाले अभिनेताओं के रूप में गांव के प्रत्येक घर में जाते हैं जहां उनका स्वागत पारंपरिक दीपों और अक्षत (चावल) से भरे बर्तनों से किया जाता है. इसके बदले महाबली परिवार के सदस्यों पर आशीर्वाद देते हैं. लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण लगातार दूसरे वर्ष ये पारंपरिक लोक कलाकार वार्षिक ‘तिरू ओणम’ के मौके पर कल (शनिवार) दशकों पुरानी प्रथा को कायम नहीं रख सकेंगे. हरे-भरे ग्रामीण इलाकों और धान के खेतों से गुजरते हुए, भारी टोपी पहने और पीतल की घंटी बजाने के अलावा हाथ में ‘‘ओलक्कुड़ा’’(ताड़ के पत्ते की छतरी) लिए ऐसे कलाकार ओणम के दौरान अक्सर दिखते हैं. ‘‘ओनापोट्टन’’ के रूप में प्रसिद्ध कलाकार महाबली का लोक प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक देवता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं.
स्थानीय मान्यता के अनुसार, मलयालम महीने चिंगम के ‘उथराडोम’ और ‘तिरू ओणम’ के दिनों में ‘ओनापोट्टन’ का घर आना और आशीर्वाद देना शुभ माना जाता है. अनुसूचित जाति में आने वाले मलय समुदाय के सदस्य लोक चरित्र के रूप में तैयार होते हैं और अपनी सदियों पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए लोगों के घरों में जाते हैं.
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ऐसे ही एक कलाकार बाबू थलप्प ने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘यह लगातार दूसरा वर्ष है जब हम ओणम के मौसम में ओनापोट्टन के रूप में तैयार नहीं हो रहे हैं. मेरा बेटे और मेरे भाई का बेटा भी इस कला के लिये तैयार होते थे.’’