कोरोना वायरस महामारी से बुरी तरह से प्रभावित हुआ किन्नर समुदाय, प्रभाव से उबारने के लिए आपात प्रतिक्रिया की बताई जरूरत
किन्नर समुदाय (Photo Credits: Twitter)

नई दिल्ली, 19 जुलाई: कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी ने लगभग सभी लोगों को प्रभावित किया है. इसके असर से किन्नर समुदाय भी अछूता नहीं रहा. इस समुदाय के अधिकतर सदस्य भीख मांगकर या शादी व अन्य समारोह में नृत्य करके गुजर बसर करते हैं, लेकिन महामारी के कारण लगे लॉकडाउन ने यह सब खत्म कर दिया. मार्च के अंत में लॉकडाउन लगने से पहले किन्नर सोनाली पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार के यातायात सिग्नल पर भीख मांगकर ब-मुश्किल अपना गुजर-बसर कर पाती थी. वह लॉकडाउन खत्म होने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी, लेकिन जब अनलॉक एक शुरू हुआ, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ा.

अनलॉक-1 में न सिर्फ सड़कों पर यातायात कम था, बल्कि लोग भीख देने के लिए अपनी कारों के शीशें भी नीचे नहीं करना चाह रहे हैं. उन्होंने कहा, "कोई हमें पैसे नहीं देना चाहता है. लोग तो अपनी कार के शीशे नीचे कर यह तक सुनने को तैयार नहीं हैं कि हमें क्या कहना है." सोनाली की ही तरह किन्नर समुदाय के कई अन्य सदस्य महामारी से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. किन्नर अधिकार समूहों के मुताबिक, भारत में किन्नरों की आबादी अनुमानित तौर पर 4.88 लाख है. इस समुदाय की आजीविका का साधन भीख मांगना, शादियों व अन्य समारोह में नृत्य करना है. कुछ यौन कर्मी भी बन जाती हैं.

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अन्य किन्नर 38 वर्षीय ऋतुपरी (बदला हुआ नाम) शादियों और अन्य समारोह में नृत्य करती थी. उनका कहना है कि नए हालात में उनके जैसे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है. उन्होंने कहा, "लोग शादी और अन्य कार्यक्रमों में अपने करीबी रिश्तेदारों को आमंत्रित नहीं कर रहे हैं, तो वे हमें क्यों बुलाएंगे. अगर हम कहीं चले जाते हैं, तो हमें हीन भावना से देखते हैं और हमें भगा देते हैं." चांदनी (बदला हुआ नाम) ट्रेनों में भीख मांगती थी. वह अपनी आजीविका का माध्यम खोने के बाद अवसाद में चली गई हैं. 42 वर्षीय चांदनी मधुमेह से गंभीर रूप से पीड़ित हैं.

उनके भाई ने कहा कि उनकी जिंदादिल बहन ने बोलना बंद कर दिया है और करीब-करीब घर से बाहर भी नहीं निकलती हैं. ओडिशा में रहने वाली किन्नर और अधिकार कार्यकर्ता आयशा बेहरा ने कहा कि समुदाय के सदस्यों को कोविड-19 से संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है. उन्होंने कहा, "वे ज्यादातर झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं, जहां एक-दूसरे से दूरी बनाने जैसा कुछ नहीं होता है. उनमें से करीब 10-15 एक ही कमरे में रहती हैं." बेहरा ने कहा कि वह किन्नर लोगों के लिए आजीविका के वैकल्पिक साधन की कोशिश में हैं.

उन्होंने कहा, "हमने हाल में कुछ स्वयं सहायता समूहों के साथ हाथ मिलाया है और किन्नर समुदाय के कुछ सदस्यों को सैनेटाइजर और फिनायल बनाना सिखाया है. हमारी योजना उन्हें परफ्यूम बनाने का प्रशिक्षण देने की भी है." अन्य किन्नर अधिकार कार्यकर्ता पुष्पा माई ने दावा किया कि समुदाय के कई सदस्यों के खिलाफ घरेलू हिंसा बढ़ी है जिसका कारण उनकी आजीविका का चला जाना है. जयपुर में रहने वाली माई ने कहा, " कई परिवार किन्नर सदस्यों की कमाई पर निर्भर करते हैं. अब वे कमाई नहीं कर पा रहे हैं. उनमें से कई के खिलाफ घरेलू हिंसा बढ़ी है. कुछ मामलों में किन्नर के साझेदार व्यक्ति उनसे लड़ते हैं."

उन्होंने कहा, "हम राशन आदि मुहैया करा रहे हैं, लेकिन यह काफी नहीं है. सरकार ने उन्हें अप्रैल में 1500 रुपये दिए थे लेकिन यह कितने दिनों तक चलेंगे." गैर लाभकारी संस्था सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीएफएआर) ने समुदाय को महामारी के प्रभाव से उबारने के लिए आपात प्रतिक्रिया की जरूरत बताई है.

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