बेंगलुरू, 17 अगस्त कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूमि आवंटन 'घोटाले' के संबंध में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है तथा कहा कि मामले की एक तटस्थ, वस्तुनिष्ठ और गैर-पक्षपातपूर्ण जांच कराना बहुत आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि वह प्रथम दृष्टया इस बात से संतुष्ट हैं कि आरोप और मामले से जुड़ी संबंधित सामग्री अपराध किए जाने का खुलासा करती हैं।
राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए उस निर्णय को ‘‘अतार्किक’’ करार दिया जिसमें मुख्यमंत्री को जारी कारण बताओ नोटिस वापस लेने तथा मुकदमा चलाने की मंजूरी की मांग करने वाली याचिका को खारिज करने की सलाह दी गई थी।
राज्यपाल ने अपने निर्णय में कहा, "याचिका के साथ आरोपों के समर्थन में सामग्री, सिद्धरमैया के उत्तर, राज्य मंत्रिमंडल की सलाह और कानूनी राय की समीक्षा करने पर मुझे लगता है कि एक ही तथ्य के संदर्भ में दो अलग-अलग पक्ष हैं।"
उन्होंने कहा, "यह बहुत जरूरी है कि निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और गैर-पक्षपाती जांच की जाए। मैं प्रथम दृष्टया संतुष्ट हूं कि आरोप और सहायक सामग्री अपराध किए जाने का खुलासा करती हैं।"
तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर गहलोत ने कहा कि वह संतुष्ट हैं कि टी जे अब्राहम, प्रदीप कुमार एस पी और स्नेहमयी कृष्णा की याचिकाओं में उल्लिखित अपराधों को करने के आरोपों पर मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ मुकादमा चलाने की मंजूरी दी जा सकती है।
उन्होंने कहा, "अतः मैं मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 के तहत याचिकाओं में उल्लिखित कथित अपराधों के लिए में अभियोजन की मंजूरी देता हूं।"
अधिवक्ता- सामाजिक कार्यकर्ता टी जे अब्राहम द्वारा दायर याचिका के आधार पर राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने 26 जुलाई को एक 'कारण बताओ नोटिस' जारी किया था, जिसमें मुख्यमंत्री को निर्देश दिया गया था कि वह सात दिनों के भीतर उनके खिलाफ आरोपों पर जवाब प्रस्तुत करें कि उनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति क्यों न दी जाए।
कर्नाटक सरकार ने एक अगस्त को राज्यपाल को मुख्यमंत्री को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस' को वापस लेने की सलाह दी थी और राज्यपाल पर संवैधानिक कार्यालय के घोर दुरुपयोग का आरोप लगाया था। साथ ही याचिकाकर्ता अब्राहम के अनुरोध के अनुसार पूर्व अनुमोदन और मंजूरी से इनकार करते हुए उक्त आवेदन को खारिज करने की भी सलाह दी थी।
वेंकटचलपति, आईएएस की अध्यक्षता में गठित समिति और 'आयोग जांच अधिनियम 1952' के तहत एक उच्च-स्तरीय एकल सदस्यीय जांच समिति की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने कहा कि उच्च-स्तरीय एकल सदस्यीय समिति की जांच शर्तों से स्पष्ट होता है कि वैकल्पिक भूमि के अवैध आवंटन में अनियमितताओं से जुड़े गंभीर आरोप हैं।
गहलोत ने कहा कि आईएएस अधिकारी के अधीन एक समिति गठित करना तथा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के अधीन तत्काल एक और समिति गठित करना तथा सरकार द्वारा खुद स्वीकार करना कि एमयूडीए द्वारा स्थलों के आवंटन में संभावित रूप से बड़ा घोटाला है, बहुत अधिक विश्वास पैदा नहीं करता।"
उन्होंने कहा कि "यह एक सुस्थापित कानूनी सिद्धांत है कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध आरोप लगाए गए हैं, उसे कार्रवाई का निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में ऐसे गंभीर आरोप होने तथा इस तथ्य के बावजूद कि सामग्री प्रथम दृष्टया आरोपों का समर्थन करती है, इसलिए मंत्रिपरिषद द्वारा लिया गया निर्णय तर्कहीन है।"
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