मुंबई, 31 जनवरी बंबई उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ फर्जी खबरों से निपटने के लिए संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को खंडित फैसला सुनाया।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल याचिकाकर्ताओं की दलीलों से सहमत हुए, वहीं न्यायमूर्ति नीला गोखले ने सरकार के पक्ष को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति पटेल ने अदालत कक्ष में कहा, ‘‘हमारे बीच असहमति है। मैंने याचिकाओं पर विचार किया है और न्यायमूर्ति गोखले ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया है। इसलिए अब इस मामले की सुनवाई तीसरे न्यायाधीश द्वारा नए सिरे से की जाएगी।’’
मामला उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा जो इसे तीसरे न्यायाधीश को सौंपेंगे।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को दिए गए पहले के आश्वासन को 10 दिन के लिए बढ़ाने पर सहमति जताई कि जब तक फैसला नहीं आ जाता, सरकार सोशल मीडिया पर फर्जी, झूठे और भ्रामक तथ्य चिह्नित करने के लिए संशोधित आईटी नियमों के तहत स्थापित की जाने वाली फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) को अधिसूचित नहीं करेगी।
पीठ ने इस कथन को स्वीकार कर लिया। नियमों के तहत, यदि एफसीयू को ऐसे किसी पोस्ट के बारे में पता चलता है या उसके बारे में सूचित किया जाता है जो फर्जी, गलत है या जिसमें सरकार के कामकाज से संबंधित भ्रामक तथ्य हैं, तो वह इसे सोशल मीडिया मध्यस्थों को भेज देगा। इसके बाद पोस्ट को हटाने या उस पर अस्वीकरण का विकल्प होगा। दूसरा विकल्प चुनने पर मध्यस्थ कंपनियों को कानूनी छूट नहीं मिलेगी और वे कानूनी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होंगे।
स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ और ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स’ ने नियमों के खिलाफ याचिकाएं दायर कीं थीं, उन्हें मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए दावा किया था कि उनका नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर भयानक प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, केंद्र ने कहा कि वह सरकार को निशाना बनाने वाली किसी भी तरह की राय, आलोचना, व्यंग्य के खिलाफ नहीं है और नियम केवल सोशल मीडिया पर झूठे और भ्रामक तथ्यों को प्रतिबंधित करने या रोकने के लिए हैं।
छह अप्रैल, 2023 को, केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की थी।
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