मुंबई, 28 दिसंबर रिजर्व बैंक एक लेख में कहा गया है कि भारत के लिये मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत पर बरकरार रखना उपयुक्त है क्योंकि निम्न दर का लक्ष्य लेकर चलना मौद्रिक नीति के लिये अपस्फीति की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के समान हो सकता है।
अपस्फीति रुख का मतलब है कि आर्थिक नीति की प्रवृत्ति निम्न वृद्धि दर और निम्न मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने वाली होगी।
मौजूदा व्यवस्था के तहत आरबीआई को सरकार ने खुदरा मुद्रस्फीति 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत पर बरकरार रखने की जिम्मेदारी दी है। यानी ऊंचे में अधिक से अधिक छह प्रतिशत तक और नीचे में दो प्रतिशत तक जा सकती है।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा और अन्य अधिकारी हरेन्द्र कुमार बेहेरा द्वारा लिखे गये इस दस्तावेज में कहा गया है कि 2014 से मुद्रास्फीति में गिरावट की प्रवृत्ति है और यह 4.1 से 4.3 प्रतिशत रही है।
इसमें कहा गया है, ‘‘निम्न दर का लक्ष्य लेकर चलना मौद्रिक नीति के लिये अपस्फीति की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना होगा क्योंकि इससे कुल मिलाकर अर्थव्यस्था जो हासिल कर सकती है, उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।’’
आरबीआई ने इस लेख के आधार पर एक विज्ञप्ति में कहा है, ‘‘तुलनात्मक रूप से प्रवृत्ति से ऊपर लक्ष्य तय करने से मौद्रिक नीति का रुख प्रसार वाला हो जाएगा। इससे महंगाई के मोर्चे में अचानक वृद्धि देखने को मिल सकती है। इसीलिए, भारत के लिये मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखना उचित है।’’
लेख के अनुसार भारत में जून 2016 में दिये गये लक्ष्य... 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत मुद्रास्फीति...को देखते हुए नियमित तौर पर अद्यतन के साथ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर की प्रवृत्ति का अनुमान जताना महत्वपूर्ण है।
विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि लेखक आरबीआई से जुड़े हैं और रिपोर्ट में उनके अपने विचार हैं। यह जरूरी नहीं है कि संस्थान इससे सहमत हो।
रिजर्व बैक कानून 1934 की धारा 45जैडए में यह कहा गया है कि केन्द्र सरकार केन्द्रीय बैंक के साथ सलाह कर प्रत्येक पांच साल में मुद्रास्फीति लक्ष्य तय कर सकती है। इस लिहाज से मुद्रास्फीति लक्ष्य की मार्च 2021 के अंत में समीक्षा की जा सकती है।
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