डबलिन, 14 मार्च : अनुसंधानकर्ता दशकों से उन लोगों के लिए प्रासंगिक कानूनी दर्जा तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं जो बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर हुए हैं और जिनकी वजह से उनके निवास स्थान को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है.
इसके साथ ही उपयुक्त कानून बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि जिनसे उनकी (बेघर हुए लोगों की) सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. लेकिन अन्य कारणों से शरण मांगने वाले लोगों के बीच बहुधा जलवायु शरणार्थियों को भुला दिया जाता है. यह भी पढ़ें : राहुल की टिप्पणी को लेकर राज्यसभा में गतिरोध जारी, गोयल के खिलाफ कांग्रेस का विशेषाधिकार नोटिस
आपदा की वजह से अपना देश छोड़ने को मजबूर हुए प्रवासियों (पर्यावर्णीय प्रवासियों) की रक्षा करने के लिए कुछ कानूनविदों ने वर्ष 1951 के शरणार्थी समझौते में शरणार्थी की परि को संशोधित करने का प्रस्ताव किया ताकि पर्यावरण आपदा को उत्पीड़न माना जा सके.