नयी दिल्ली, 26 जून: राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने दिल्ली के एक निजी अस्पताल और संबंधित डॉक्टरों पर प्रजनन प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ी के लिए 1.5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. डाक्टरों ने महिला को गर्भ धारण में मदद के लिए पति के बजाय किसी और व्यक्ति के शुक्राणुओं का इस्तेमाल किया था. Ozempic Butt: आधुनिक वजन घटाने वाली दवा का विचित्र दुष्प्रभाव, लोग हो रहे हैं ‘ओजेम्पिक बट’ का शिकार.
शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने एआरटी क्लीनिकों के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां कीं जो हाल के वर्षों में तेजी से बढ़े हैं और जहां “बड़े पैमाने पर अनैतिक प्रक्रियाएं” चल रही थीं. उसने कहा कि ऐसे क्लीनिकों की मान्यता की जांच के अलावा नवजात शिशुओं का डीएनए प्रोफाइल जारी करना अनिवार्य किये जाने की आवश्यकता है.
आयोग दंपति की एक शिकायत पर सुनवाई कर रहा था, जिसके अनुसार पत्नी ने जून 2009 में एआरटी प्रक्रिया के माध्यम से जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था. शिशुओं का रक्त समूह क्योंकि माता-पिता से बच्चे तक संभावित रक्त समूहों के आनुवंशिक संचरण के अनुरूप नहीं था, ऐसे में बाद में पितृत्व परीक्षण या डीएनए प्रोफाइल किया गया जिससे पता चला कि महिला का पति उसके जुड़वां बच्चों का जैविक पिता नहीं था.
दंपति ने सेवा में लापरवाही और कमी के लिए दो करोड़ रुपये के मुआवजे का दावा करते हुए आयोग का रुख किया. इसमें कहा गया कि इससे उनके लिए भावनात्मक तनाव, पारिवारिक कलह और आनुवंशिक रूप से विरासत में मिली बीमारियों का डर सहित कई मुद्दे पैदा हो गए.
पीठासीन सदस्य एस.एम. कानितकर ने अपने हालिया आदेश में कहा, “मेरे विचार में, मौजूदा मामला विरोधी पक्षों द्वारा अपनाई गई भ्रामक और अनुचित व्यापार प्रथाओं का है जो पेशेवर नैतिकता भूल गए हैं. इस प्रकार विपरीत पक्ष 1-3 (अस्पताल, उसके निदेशक और अध्यक्ष) के अलावा विरोधी पक्ष 4-6 (तीन डॉक्टर) लापरवाही और अनुचित व्यापार प्रथाओं के लिए उत्तरदायी हैं... मैं प्रतिवादियों के खिलाफ 1.5 करोड़ रुपये की कुल एकमुश्त देनदारी तय करता हूं.”
उन्होंने कहा कि रक्त समूह रिपोर्ट और डीएनए प्रोफ़ाइल ने “स्पष्ट रूप से साबित किया” कि पति बच्चों का जैविक पिता नहीं था. आयोग ने कहा कि जुड़वां बच्चियों की पारिवारिक वंशावली “अपरिवर्तनीय रूप से बदल दी गई” और वे भविष्य में कठिनाइयों का सामना कर सकती हैं.
इसमें कहा गया कि संबंधित पक्षों की लापरवाही “निर्णायक रूप से स्थापित” थी और अस्पताल ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया.
यह देखते हुए कि दोनों लड़कियां अब 14 साल की हैं, आयोग ने कहा कि माता-पिता ने कई खर्चे उठाए होंगे और वे “पर्याप्त मुआवजे” के हकदार हैं. आयोग ने यह भी कहा कि आदेश की एक प्रति राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को भेजी जाए ताकि वे एआरटी सेंटरों के लिए जरूरी निर्देश जारी करने में सक्षम हो सकें.
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