अजमेर, 16 नवंबर : ब्रह्मा की नगरी पुष्कर और ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के लिए विख्यात अजमेर में इन दिनों विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी उफान पर है. दो प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा के अपने अपने दावे हैं . लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और हिंदुत्व के सहारे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपना यह मजबूत किला महफूज रख पाएगी या अशोक गहलोत सरकार की योजनाएं तथा कांग्रेस की 'सात गारंटी' तस्वीर को बदल देंगी. पिछले करीब दो दशक से आमतौर पर अजमेर का जनमत भाजपा के साथ रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में अपनी सत्ता गंवाने के बावजूद भाजपा अजमेर जिले की आठ में से छह सीटें जीतने में सफल रही थी.
परंपरागत रूप से भाजपा के समर्थक माने जाने वाले वर्गो में 'हिंदुत्व' के मुद्दे के अहम होने, प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और हर पांच साल में सरकार बदलने की रवायत इस बार भी भाजपा की राजनीतिक जमीन को खासी मजबूती दे रही है. यह जरूर है कि अजमेर उत्तर और कुछ अन्य सीटों पर बागियों का चुनाव मैदान में होना उसके लिए एक चुनौती है. कांग्रेस इस बार अपना पूरा प्रचार अभियान चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, 500 रुपये का सिलेंडर तथा कुछ अन्य योजनाओं और सात चुनावी गारंटी पर केंद्रित किए हुए है. वह इनके जरिये भाजपा के इस किले को भेदने की कोशिश में है. हालांकि स्थानीय स्तर की गुटबाजी उसके लिए परेशानी का सबब है. यह भी पढ़ें : भारत अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में निर्बाध वैध वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए प्रतिबद्ध है: राजनाथ
अजमेर में दोनों प्रमुख दलों के समर्थक मतदाता खुलकर अपनी राय जाहिर करते हैं. अजमेर शहर के एक स्थानीय व्यवसायी विनोद कुमार जैन का कहना है कि अजमेर, खासकर शहरी क्षेत्र का मतदाता इस बार भी बड़े स्तर पर भाजपा के साथ नजर आ रहा है. उन्होंने 'पीटीआई-' से कहा, "मेरी राय में अजमेर शहर में नतीजा इस बार भी पिछली बार की तरह ही होगा... हर पांच साल में सरकार बदलने का सिलसिला बना रहेगा."