देश की खबरें | वांगचुक और अन्य को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन की अनुमति देने के मामले में अदालत में बुधवार को सुनवाई

नयी दिल्ली, आठ अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और अन्य को राष्ट्रीय राजधानी में जंतर-मंतर या अन्य उचित स्थान पर विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति देने संबंधी याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा।

इस संबंध में दाखिल याचिका का मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष मंगलवार को तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख किया गया लेकिन पीठ ने मामले को बुधवार को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता ‘एपेक्स बॉडी लेह’ के वकील ने अदालत से कहा, ‘‘लद्दाखी कार्यकर्ता सोनम वांगचुक 200 पदयात्रियों के साथ दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। कृपया याचिका को आज भोजनावकाश के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें।’’

हालांकि, पीठ ने कहा कि संबंधित न्यायाधीशों द्वारा दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद मामले को नौ अक्टूबर को सूचीबद्ध किया जाएगा।

याचिका में कहा गया कि संगठन ने लेह, लद्दाख से दिल्ली तक शांतिपूर्ण विरोध मार्च निकाला जिसमें वांगचुक और करीब 200 अन्य लोग शामिल हैं। यह मार्च 30 दिन में 900 किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर चुका है, जिसका उद्देश्य लद्दाख और व्यापक हिमालयी क्षेत्र की पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक क्षति के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है।

इसमें कहा गया, ‘‘याचिकाकर्ता संगठन की मंशा आठ से 23 अक्टूबर तक दिल्ली में जंतर-मंतर या किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर जागरूकता अभियान और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की है।’’

याचिका में दलील दी गई कि दिल्ली पुलिस ने पांच अक्टूबर को संगठन को एक पत्र भेजा था, जिसमें जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के अनुरोध को ‘‘मनमाने ढंग से अस्वीकार कर दिया’’ और इस तरह ‘‘याचिकाकर्ता के अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण तरीके से सभा करने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया’’।

अदालत से दिल्ली पुलिस के पत्र को रद्द करने का भी अनुरोध किया गया है।

लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर लद्दाख से राष्ट्रीय राजधानी मार्च करते हुए आए वांगचुक और उनके सहयोगियों को 30 सितंबर को दिल्ली की सीमा पर स्थानीय पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। उन्हें हालांकि, बाद में रिहा कर दिया गया।

संविधान की छठी अनुसूची ‘‘स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों’’ के रूप में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।

याचिका में दावा किया गया कि पुलिस ने विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के अनुरोध को खारिज करने के लिए कोई वैध आधार नहीं दिया है।

इसमें कहा गया, ‘‘प्रस्तावित प्रदर्शन असहमति की एक शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति है जिसका उद्देश्य याचिकाकर्ता संगठन द्वारा महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों को उजागर करना है। प्रस्तावित ‘अनशन’ का उद्देश्य महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और अधिकारियों तक शिकायतों को पहुंचाना है। अनुमति न देकर, प्रतिवादी प्रभावी रूप से इस मौलिक अधिकार का दमन कर रहा है...।’’

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