नयी दिल्ली, 16 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ याचिका खारिज कर दी, जिसमें अशांत क्षेत्रों में संपत्तियों को लेकर 1991 के राज्य कानून के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने से इनकार कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक कानून के साथ संवैधानिकता की धारणा जुड़ी होती है।
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने पूछा, ‘‘अंतरिम आदेश द्वारा कुछ प्रावधानों को कैसे निलंबित किया जा सकता है? प्रत्येक अधिनियम के साथ संवैधानिकता की धारणा जुड़ी होती है।’’
गुजरात उच्च न्यायालय ने 28 अक्टूबर को गुजरात अचल संपत्ति के हस्तांतरण पर रोक और अशांत क्षेत्रों में परिसर से बेदखली से किरायेदारों को संरक्षण प्रदान करने के प्रावधान वाले 1991 के अधिनियम के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने की मांग वाली एक अर्जी खारिज कर दी थी।
यह कानून राज्य के अशांत क्षेत्रों में अचल संपत्ति के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाता है।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि जहां तक 1991 के अधिनियम के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने के लिए मांगी गई राहत का सवाल है - जिनकी वैधता को रिट याचिका में ही चुनौती दी गई थी - यह उचित नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिट याचिका के गुण-दोष पर विचार किये जाने की जरूरत है।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली अपनी लंबित याचिका को उच्च न्यायालय के समक्ष आगे बढ़ा सकते हैं।
इसमें कहा गया कि मुख्य याचिका पिछले तीन वर्षों से उच्च न्यायालय में लंबित है और याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से शीघ्र सुनवाई का अनुरोध कर सकते हैं।
शीर्ष अदालत की पीठ ने पूछा, ‘‘क्या आपकी उच्च न्यायालय में शीघ्र सुनवाई में दिलचस्पी नहीं है? ’’
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वे चाहते हैं कि मुख्य मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में शीघ्र हो।
उच्चतम न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘हम उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा सुनाए गए आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं।’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)