अहमदाबाद, चार जुलाई गुजरात सरकार ने राज्य में 2002 में हुए दंगों के बाद बेगुनाह लोगों को फंसाने के लिए कथित रूप से सबूत गढ़ने के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की आरोप मुक्त करने के लिए यहां की एक सत्र अदालत में दायर याचिका का विरोध किया है।
सरकार ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अंबालाल पटेल की अदालत को सोमवार को बताया कि सीतलवाड़ ने 2002 के दंगा पीड़ितों के विश्वास का दुरुपयोग किया है।
सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि सीतलवाड़ ने तत्कालीन मुख्यमंत्री (नरेन्द्र मोदी), वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों सहित निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए दंगा पीड़ितों के नाम पर हलफनामे तैयार किए।
उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को सीतलवाड़ को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया था और गुजरात उच्च न्यायालय के उस आदेश पर एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी थी जिसमें नियमित ज़मानत की उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था और उनसे मामले में आत्मसमर्पण करने को कहा था।
सीतलवाड़ और दो अन्य आरोपियों - पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट - के खिलाफ मामले की सुनवाई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत में हो रही है। अदालत ने पहले आरोपमुक्त करने का आग्रह करने वाली श्रीकुमार की याचिका को खारिज कर दिया था।
आरोपमुक्त करने का आग्रह करने वाली सीतलवाड़ की याचिका का विरोध करते हुए, सरकार ने गवाहों के बयानों पर भरोसा किया है जिसमें सीतलवाड़ के एनजीओ ‘सिटीजन फॉर पीस’ में काम करने वाले रईस खान पठान, नरेंद्र ब्रह्मभट्ट और दंगा पीड़ित कुतुबुद्दीन अंसारी शामिल हैं। ब्रह्मभट्ट ने दावा किया था कि दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने कथित तौर पर कार्यकर्ता को 30 लाख रुपये दिए थे।
सरकार ने सीतलवाड़ द्वारा तैयार किए गए दंगा पीड़ितों के हलफनामों और अदालत के समक्ष दर्ज किए गए उनके बयानों में "विरोधाभास" को भी रेखांकित किया।
सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि आरोपी के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने के लिए पर्याप्त सबूत और कारण हैं। इसमें अदालत से आरोपी द्वारा दायर आरोप मुक्त करने का आग्रह करने वाली याचिका को खारिज करने की गुजारिश की गयी।
सीतलवाड़ को पिछले साल जून में गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के साथ अहमदाबाद अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप हैं कि उन्होंने गोधरा की घटना के बाद हुए दंगों के मामलों में "निर्दोष लोगों" को फंसाने के लिए सबूत गढ़े थे। सीतलवाड़ को तीन सितंबर को अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
फैसले में अदालत ने टिप्पणी की कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि सीतलवाड़ ने अपने करीबी सहयोगियों और दंगा पीड़ितों का इस्तेमाल ‘‘तत्कालीन सरकार को अपदस्थ करने और सरकार एवं उस समय के मुख्यमंत्री (मोदी) की छवि धूमिल करने के मकसद से उच्चतम न्यायालय में झूठा और मनगढ़ंत हलफनामा दाखिल करने में किया।’’
ज़किया जाफरी की ओर से दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के एक दिन बाद सीतलवाड़, भट्ट और श्रीकुमार के खिलाफ फर्जी सबूत गढ़ने का मामला दर्ज किया गया था।
शीर्ष अदालत ने कांग्रेस के दिवंगत पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित 64 लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट देने को चुनौती दी गई थी।
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