नयी दिल्ली, 22 नवंबर टमाटर की खुदरा कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव को दूर करने के लिए, केंद्र ने आपूर्ति श्रृंखला के साथ-साथ प्रसंस्करण स्तरों में सुधार के लिए 'टमाटर ग्रैंड चैलेंज' हैकथॉन के तहत 28 नवप्रवर्तकों को निधि प्रदान की है।
सरकार अब इन नवप्रवर्तकों को निवेशकों और कॉरपोरेट्स से जोड़कर उनके व्यवसाय को बढ़ाने में मदद करेगी।
उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने शुक्रवार को कहा कि टमाटर मूल्य श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर नवीन विचारों को आमंत्रित करने के लिए पिछले साल जून में 'टमाटर ग्रैंड चैलेंज' (टीजीसी) हैकथॉन शुरू किया गया था ताकि उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके और टमाटर किसानों को उपज का उचित मूल्य मिल सके।
टीजीसी को शिक्षा मंत्रालय (नवाचार प्रकोष्ठ) के सहयोग से उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा तैयार किया गया था।
खरे ने कहा, ‘‘टमाटर की कीमतों में बहुत उतार-चढ़ाव है। अत्यधिक बारिश, गर्मी और कीटों के हमले के कारण कीमतों में तेजी से वृद्धि होती है।’’ उन्होंने कहा कि साल में कम से कम 2-3 बार अचानक कीमतों में 100 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।
उन्होंने बताया कि कभी-कभी कीमतों में भारी गिरावट आती है, जिससे किसानों की आय प्रभावित होती है।
खरे ने जोर देकर कहा कि आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने, कटाई से पहले और बाद में होने वाले नुकसान को कम करने और प्रसंस्करण स्तर को बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि उपभोक्ताओं और किसानों, दोनों के लाभ के लिए कीमतों में स्थिरता लाई जा सके। भारत में सालाना दो करोड़ टन टमाटर का उत्पादन होता है।
खरे ने कहा, ‘‘हमें 1,376 विचार प्राप्त हुए और उनमें से 423 को पहले चरण में छांटा गया और अंत में 28 विचारों को वित्तपोषित किया गया।’’
आगे की राह के बारे में पूछे जाने पर, खरे ने कहा कि विभाग अब इन स्टार्टअप को सहायता प्रदान करेगा और निवेशकों के साथ-साथ अन्य कंपनियों से मिलने में उनकी मदद करेगा, ताकि वे अपने कारोबार को बढ़ा सकें।
सचिव ने कहा कि टमाटर की कीमतों में उतार-चढ़ाव को दूर करने की प्रेरणा देश द्वारा दूध की आपूर्ति में प्राप्त सफलता से मिली है, दूध भी एक जल्द खराब होने वाली वस्तु है। खरे ने टमाटर से वाइन बनाने सहित कुछ नवीन विचारों के बारे में बात की।
भारत के लगभग सभी राज्यों में टमाटर का उत्पादन होता है, हालाँकि अलग-अलग मात्रा में। अधिकतम उत्पादन भारत के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में होता है, जो अखिल भारतीय उत्पादन में लगभग 60 प्रतिशत का योगदान देते हैं। ये क्षेत्र उपज अधिशेष राज्य होने के कारण उत्पादन के मौसम के आधार पर अन्य बाजारों को आपूर्ति करते हैं।
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