नयी दिल्ली, 15 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों का महत्वपूर्ण कर्तव्य है और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है कि ऐसी सुविधाएं सभी के लिए सुलभ हों।
एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका पर कई निर्देश जारी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा कि वे देशभर के सभी न्यायालय परिसरों और न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांग व्यक्तियों और ‘ट्रांसजेंडर’ व्यक्तियों के लिए अलग-अलग शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें।
न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जन स्वास्थ्य सर्वोपरि है और पर्याप्त सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण से निजता की रक्षा होती है और महिलाओं तथा ‘ट्रांसजेंडर’ व्यक्तियों के लिए परेशानी दूर होती है।
पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करेंगे कि ये सुविधाएं न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, वादियों और न्यायालय के कर्मचारियों के लिए स्पष्ट रूप से सुलभ हों।’’
इसने कहा, ‘‘उपर्युक्त उद्देश्य के लिए, प्रत्येक उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी और इसके सदस्यों में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल/रजिस्ट्रार, मुख्य सचिव, पीडब्ल्यूडी सचिव और राज्य के वित्त सचिव, बार एसोसिएशन का एक प्रतिनिधि और कोई अन्य अधिकारी, जिसे वे उचित समझें, शामिल होंगे। यह समिति छह सप्ताह की अवधि के भीतर गठित की जाएगी।’’
उच्चतम न्यायालय ने समिति को एक व्यापक योजना तैयार करने और औसतन हर दिन अदालतों में आने वाले व्यक्तियों की संख्या का आंकड़ा रखने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पर्याप्त संख्या में अलग शौचालय बनाए जाएं और उनका रखरखाव किया जाये।
पीठ ने कहा कि वह शौचालय सुविधाओं की उपलब्धता, बुनियादी ढांचे में कमी और उसके रखरखाव के संबंध में भी सर्वेक्षण करेगी।
उच्चतम न्यायालय का यह निर्देश वकील राजीव कलिता द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया, जिसमें देश के सभी न्यायालयों/न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांग व्यक्तियों और ‘ट्रांसजेंडर’ के लिए बुनियादी शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जीवन के अधिकार में स्वस्थ और स्वच्छ जीवन का अधिकार तथा सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है। न्यायालय ने कहा, ‘‘सार्वजनिक शौचालयों तक पहुंच सुनिश्चित करना नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों का महत्वपूर्ण कर्तव्य है और केवल ऐसे प्रावधान करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए कि शौचालय पूरे वर्ष उपलब्ध रहें।’’
अदालत ने कहा कि शौचालय महज सुविधा का विषय नहीं है, बल्कि यह एक बुनियादी आवश्यकता है जो मानवाधिकार का एक पहलू है।
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