विदेश की खबरें | यूरोप में लिंग आधारित भेदभाव : चार दशक में कारपोरेट बोर्डरूम से महिलाएं नदारद
श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

मिलानो, छह जनवरी (360इन्फो) हाल ही में जारी अनूठे आंकड़े पूरे यूरोप में कॉर्पोरेट बोर्डरूम में महिलाओं की व्यापक अनुपस्थिति बताते हैं।

कार्यबल में बड़ी हिस्सेदारी होने के बावजूद, यूरोप भर में कॉर्पोरेट बोर्डरूम में महिलाएँ अल्पसंख्यक बनी हुई हैं। इस मुद्दे ने दुनिया भर में आधी आबादी को लेकर बहस को जन्म दिया है और कई देशों को कंपनियों के लिए लैंगिक कोटा अनिवार्य करने के लिए प्रेरित किया है।

उदाहरण के लिए, नॉर्वे में, बड़ी और मध्यम फर्मों को यह गारंटी देना अनिवार्य है कि बोर्ड के सदस्यों में कम से कम 40 प्रतिशत महिलाएँ और पुरुष दोनों हों।

एक ओर जहां सार्वजनिक (सूचीबद्ध) कंपनियाँ अक्सर अपने बोर्ड के सदस्यों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट देती हैं, वहीं निजी (गैर-सूचीबद्ध) कंपनियों के लिए डेटा प्राप्त करना बहुत अधिक चुनौतीपूर्ण है। फिर भी निजी कंपनियों में विविधता की तस्वीर को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा हैं और अक्सर किसी भी कोटा या रिपोर्टिंग कानून के दायरे से बाहर होती हैं।

जेंडर बोर्ड डायवर्सिटी डेटासेट (जीबीडीडी)

इस विषय पर प्रकाश डालने के लिए, ‘नॉर्वेजियन फाइनेंशियल मैकेनिज्म’ द्वारा वित्त पोषित ‘ग्रुप फॉर रिसर्च इन एप्लाइड इकोनॉमिक्स’ (जीआरएपीई) और वारसॉ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 1985 और 2020 के बीच की अवधि में 43 यूरोपीय देशों की 2.9 करोड़ से अधिक फर्मों में प्रबंधन और पर्यवेक्षी बोर्डों में बैठने वाले लगभग 5.9 करोड़ व्यक्तियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।

सांस्कृतिक और ई अनुमानों पर आधारित एक नई पद्धति को लागू करके वे अपने नमूने में 99 प्रतिशत से अधिक बोर्ड सदस्यों के लिंग का पता लगाने में सक्षम थे। उदाहरण के लिए कुछ ओं में जैसे चेक, उपनाम लिंग-विशिष्ट प्रत्यय के साथ समाप्त होते हैं जबकि अन्य ओं में जैसे पोलिश महिलाओं के पहले नाम स्वर के साथ समाप्त होते हैं।

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