नयी दिल्ली, तीन जनवरी राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने माना है कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत किसी भी कर्जदार कंपनी के खिलाफ परिसमापन प्रक्रिया शुरू होने के बाद ईपीएफओ एवं अन्य वैधानिक अधिकारियों की मूल्यांकन कार्यवाही पर कोई बंदिश नहीं है।
हालांकि अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि किसी ऋणग्रस्त कंपनी के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू होने के बाद अगर उसे स्थगन के तहत संरक्षण मिल जाता है, तो कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ऐसी कार्यवाही जारी नहीं रख सकता है।
ईपीएफओ की दो याचिकाओं को खारिज करते हुए एनसीएलएटी ने कहा कि एक बार जब किसी कंपनी को आईबीसी की धारा 14 (1) के प्रावधानों के अनुरूप स्थगन के तहत संरक्षण मिल जाता है तो बकाया राशि के निर्धारण के लिए मूल्यांकन कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती है।
एनसीएलएटी ने कहा, “हम मानते हैं कि धारा 14, उपधारा (1) के तहत स्थगन आने के बाद ईपीएफओ कोई मूल्यांकन कार्यवाही जारी नहीं रख सकता है। अगर परिसमापन का आदेश पारित होने के बाद धारा 33 की उपधारा (5) मूल्यांकन कार्यवाही शुरू करने या जारी रखने पर रोक नहीं लगाती है।”
इसने कहा कि स्थगन अवधि के दौरान किए गए मूल्यांकन के आधार पर कोई दावा कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के तहत नहीं किया जा सकता है।
हालांकि एनसीएलएटी ने कहा कि एक बार परिसमापन का आदेश पारित हो जाने के बाद, धारा 14 के तहत स्थगन समाप्त हो जाता है और धारा 33(5) के तहत स्थगन, जिसे अलग तरीके से लिखा गया है, लागू हो जाता है।
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