नयी दिल्ली, 12 दिसंबर विभिन्न दलों के सांसदों ने देश में आपदाओं से निपटने के लिए स्थायी समाधान निकालने की जरूरत पर जोर देते हुए बृहस्पतिवार को सरकार से मांग की कि आपदा प्रबंधन के लिए राज्यों को अधिक मदद प्रदान की जाए।
लोकसभा में ‘आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024’ पर चर्चा में भाग लेते हुए समाजवादी पार्टी के रामशिरोमणि वर्मा ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास बाढ़ प्रबंधन से निपटने के लिए धन नहीं रहता और इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर अधिक से अधिक संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार संसद में विधेयक लाकर आपदाओं से निपटने के लिए अच्छी व्यवस्था देने की बात करती है, दूसरी तरफ सरकारी विभाग ऐसी स्थिति में धन नहीं होने की बात कहता है तो आपदा से कैसे निपटा जाएगा।
वर्मा ने स्थानीय स्तर पर आपदा निगरानी तंत्र स्थापित करने की जरूरत बताई जिनमें जन प्रतिनिधि शामिल हों।
उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र श्रावस्ती में आई बाढ़ का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार से मांग की कि राज्य सरकार के साथ मिलकर सर्वे कराया जाए और राप्ती नदी के किनारे कटान में बह जाने वाले घरों के लिए पीड़ितों को 20 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए।
द्रमुक सांसद एम कनिमोई ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इसे सदन में लाने से पहले राज्यों से विचार-विमर्श और परामर्श नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि सरकार को आपदा प्रबंधन को अधिक गंभीरता से लेना होगा।
कनिमोई ने तमिलनाडु में बाढ़ और केरल के वायनाड में भूस्खलन की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि इनसे निपटने और पुनर्वास आदि सहायता कार्यों के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को पर्याप्त राशि नहीं दी है।
उन्होंने कहा कि देश में चक्रवाती तूफान आदि को लेकर की जाने वाली भविष्यवाणियां आधुनिक पूर्वानुमान के बजाय ज्योतिषीय अधिक लगती हैं।
कनिमोई ने कहा कि आपदा से एक दिन पहले नोटिस देने पर कोई भी राज्य क्या कर सकता है और कितने लोगों को बचा सकता है।
उन्होंने तमिलनाडु की तरह देश में ‘हीट वेव’ को भी आपदा घोषित करने की मांग की।
तेलुगु देशम पार्टी के केसी नेनी शिवनाथ ने इसे समय पर लाया गया विधेयक बताते हुए कहा कि देश में बढ़ती आपदाओं के बीच यह जरूरी कदम है।
जनता दल (यूनाइटेड) के दिनेश चंद्र यादव ने कहा कि बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक कमजोर वर्ग और महिलाएं तथा बच्चे प्रभावित होते हैं और इन्हें ध्यान में रखकर ही योजनाएं बनाई जानी चाहिए।
शिवसेना (उबाठा) के अनिल देसाई ने कहा कि आपदा प्रबंधन में अधिक से अधिक निकाय बनाने से निर्णय लेने की प्रक्रिया जटिल हो जाएगी।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राजेश वर्मा ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से आपदाओं के स्थायी समाधान की दिशा में काम होगा, ऐसा विश्वास है।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बुधवार को लोकसभा में विधेयक पेश करते हुए कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में आपदाओं की प्रकृति में काफी बदलाव आया है, लेकिन सरकार का लक्ष्य आपदाओं के कारण होने वाले जानमाल के नुकसान के आंकड़े को ‘शून्य’ करना है।
आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाकर आपदा प्रतिक्रिया को विकेंद्रीकृत करने और जमीनी स्तर पर तैयारियों के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित करने जैसे प्रमुख सुधारों के माध्यम से इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त करना है।
कांग्रेस के सप्तगिरी शंकर उलाका ने दावा किया कि राज्य आपदा राहत कोष(एसडीआरएफ) जब भी राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) से पैसे मांगता है तो केंद्र स्तर का यह निकाय पर्याप्त धन नहीं आवंटित करता। उन्होंने इस बाबत कई आंकड़ों का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि किसी भी आपदा में जिला और निचले स्तर के निकाय को सबसे पहले कदम उठाने होते हैं और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की भूमिका बाद में दिखती है।
उन्होंने पूछा कि आखिर केंद्र सरकार आपदा प्रबंधन के केंद्रीकरण में क्यों जुटी है और इससे सहकारी संघवाद का क्या होगा?
उन्होंने कहा कि संबंधित विधेयक स्थानीय निकाय के अधिकारों को कम करता है।
भाजपा के गणेश सिंह ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह विधेयक पूरी तरह से राज्यों को और अधिकार दे रहा है और मजबूत कर रहा है।
उन्होंने कहा कि इस विधेयक के प्रावधानों में आपदा प्रबंधन में सहायक प्राधिकरणों को और अधिक सशक्त बनाना और डाटा बेस तैयार करना आदि शामिल है।
सिंह ने कहा कि आपदाओं के निदान को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों को अरबों रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है और इस विधेयक में किये गये प्रावधानों के जरिये इस पर अंकुश लगाया जा सकता है।
वाईएसआर कांग्रेस की गुम्मा तनुजा रानी ने विधेयक का समर्थन किया। उन्होंने समय-समय पर आपदा प्रबंधन की तैयारियों का जायजा लेने की केंद्र को सलाह दी।
शिवसेना के श्रीरंग आप्पा बारणे ने कहा कि कोविड महामारी ने हमें आपदाओं से निपटने के लिए पहले से ही तैयारियां करने की सीख दी है।
उन्होंने कहा कि देश में विभिन्न कालखंड में बाढ़, चक्रवात, तूफान, बादल फटने आदि प्राकृतिक आपदाओं में सैंकड़ों की संख्या में लोग मारे जाते हैं।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार राज्य में आई आपदाओं से निपटने के लिए 21 दिन के भीतर मदद करती है और आगे भी करती रहेगी।
राष्ट्रीय जनता दल के सुधाकर सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन ऐसी वास्तविकता है जो हर देशवासी को प्रभावित करने वाली है और इसका एकजुट हल करना अनिवार्य है।
उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि नया विधेयक सत्ता को केंद्र में केंद्रीकृत करेगा।
उन्होंने मौजूदा विधेयक के कानून में परिवर्तित होने के बाद धन के दुरुपयोग की आशंका भी जताई। उन्होंने दावा किया इस विधेयक में लू के कारण होने वाली घटनाओं को नजरंदाज किया गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इस विधेयक से राज्य एवं स्थानीय निकायों के अधिकार समाप्त होंगे।
समाजवादी पार्टी के छोटेलाल ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को निष्क्रिय करार देते हुए कहा कि इस प्राधिकरण में नौकरशाही का बोलबाला है।
उन्होंने आपदा मित्रों और आपदा सखियों के न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 26 हजार रुपये किये जाने, उन्हें मोबाइल उपलब्ध कराने एवं उनकी बीमा राशि बढ़ाकर 20 लाख रुपये किये जाने की मांग की।
तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने इस विधेयक को लाने में देरी की बात कही और इसके लिए केंद्र सरकार की आलोचना की।
रॉय ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मानव निर्मित आपदाएं भी हैं, इनमें परमाणु परीक्षण भी शामिल हैं।
उन्होंने पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में मैंग्रोव को काटे जाने का मुद्दा उठाया।
तृणमूल कांग्रेस सदस्य ने कहा कि उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से इस बारे में चर्चा की लेकिन ‘‘उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव में व्यस्तता का बहाना बनाकर उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।’’
उन्होंने कोरोना महामारी को मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता करार दिया।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)