नयी दिल्ली, 30 अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 में हुए दंगों से संबंधित उन याचिकाओं को नौ अक्टूबर को सुनवाई के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध किया, जिनमें कथित नफरत भरे भाषणों के लिए कुछ नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अर्जियां भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के बाद दायर याचिकाओं पर सुनवाई की जरूरत है। हालांकि उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्या याचिकाओं में मांगी गई कुछ राहतों का अब महत्व समाप्त हो चुका है।
पीठ ने संबंधित पक्षों से लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा और यह भी निर्देश दिया कि नेताओं द्वारा कथित नफरत भरे भाषणों के लिए प्राथमिकी की मांग करने वाले एक अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश को रिकॉर्ड पर रखा जाए।
चौबीस फरवरी, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच बेकाबू हिंसा के बाद सांप्रदायिक झड़पें हुई थीं, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए और करीब 700 घायल हो गए।
दंगों के संबंध में उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं लंबित हैं।
कथित नफरत भरे भाषणों के लिए नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध के अलावा कुछ याचिकाएं हिंसा की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने और हिंसा में कथित रूप से शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी की भी मांग करती हैं।
याचिकाकर्ता अजय गौतम ने आंदोलन के पीछे "राष्ट्र-विरोधी ताकतों" का पता लगाने के लिए गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत एनआईए जांच का अनुरोध किया है।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)