नयी दिल्ली, 10 अक्टूबर : दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनधिकृत दूरस्थ शिक्षण संस्थानों के ‘अनियंत्रित प्रसार’ के विरुद्ध चेताया और कहा कि इनके कारण घटिया शिक्षा का बाजार फल-फूल रहा है जिससे अनेक लोग गुणवत्ता शिक्षा हासिल करने से वंचित हो रहे हैं. न्यायमूर्ति पी. के. कौरव ने कहा कि ऐसे संस्थान अकादमिक साख को कमतर करते हैं तथा उन विद्यार्थियों की आकांक्षाओं पर बहुत बुरा असर डालते हैं जो वैध साधनों के जरिए शिक्षार्जन हेतु अपना समय एवं संसाधन लगाते हैं.
अदालत ने एक विद्यार्थी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इस विद्यार्थी को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने इस आधार पर स्नातोकोत्तर में दाखिला देने से इनकार कर दिया था कि नोएडा में सिक्किम मणिपाल विश्वविद्यालय के 'कैंपस सेंटर' से प्राप्त स्नातक डिग्री अकादमिक उद्देश्य के लिए स्वीकार्य नहीं है. अदालत ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि एक ऐसी प्रविधि से अपनी शिक्षा पूरी कर याचिकाकर्ता इग्नू के पाठ्यक्रम में दाखिले का दावा नहीं कर सकता है जो न तो निर्धारित प्रारूप में है और न ही वैध समझी जाती है.
अदालत ने हाल के अपने आदेश में कहा, ‘‘ इस अदालत का यह सुविचारित मत है कि संबंधित प्रशासनों से बिना जरूरी मंजूरियों के दूरस्थ अध्ययन केंद्रों के अनियंत्रित फैलाव से अकादमिक साख गिरती है.’’ अदालत ने यह भी कहा कि सिक्किम मणिपाल विश्वविद्यालय एक निजी विश्वविद्यालय है जो राज्य के कानून के तहत स्थापित किया गया है और उच्चतम न्यायालय का निरंतर सुसंगत मत रहा है कि राज्य विधानमंडल के माध्यम से स्थापित राज्य विश्वविद्यालय को संबंधित राज्य की सीमा से बाहर संचालित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
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