देश की खबरें | अरेंज शादियों की नयी परिभाषा गढ़ रहे जोड़े, ऐसी शादियों में भी प्रेम पहली प्राथमिकता
एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, दो अगस्त परिवार की पसंद से या फिर दूर-दराज के रिश्तेदारों या जोड़ी मिलाने वालों की तरफ से ड्रॉइंग रूम, कॉफी की दुकानों या अन्य जगहों पर मिलकर और बैठकर तय कराई गई शादियों में भी अब लड़के-लड़कियों की पहली प्राथमिकता प्रेम बन गया है।

भारत के सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा माने जाने वाली अरेंज शादियों के, नेटफ्लिक्स के नए शो “इंडियन मैचमैकिंग” के साथ ही आलोचना के दायरे में आने के बाद, ज्यादा से ज्यादा जोड़े चाहते हैं कि शादी के लिए रजामंदी देने से पहले उनके बीच प्रेम हो जाए।

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समय बदल रहा है लेकिन धीरे-धीरे। विवाह की अवधारणा के अब भी जाति, धर्म और रंग-रूप पर टिके रहने के बावजूद, परिवार की पसंद से होने वाली शादियों का ज्यादातर लड़कियों के लिए अब इतना भर मतलब नहीं रह गया कि वे होने वाले सास-ससुर और ससुराल पक्ष के लोगों का चाय की ट्रे और मिठाइयां परोसकर स्वागत करें और चुपचाप बैठी रहें जब तक कि वर पक्ष के लोग उनका मुआयना कर रहे हों।

परिवार की पसंद से शादी करने वाली 28 वर्षीय प्रतिभा सिंह कहती हैं, “प्रेम होना बहुत जरूरी है वरना रिश्ते का कोई मतलब नहीं है। यह सच है कि जब आप किसी के साथ रहना शुरू करते हैं तो आप उससे बहुत प्रेम करने लगते हैं लेकिन किसी रिश्ते में आगे बढ़ने से पहले कुछ आकर्षण, केमिस्ट्री और एक-दूसरे को समझने के लिहाज से मेल-मिलाप जरूरी है।”

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सरकार की नियामक संस्था में काम करने वाली सिंह की एक केवल एक शर्त थी कि वह नौकरी नहीं छोड़ेंगी।

उनके माता-पिता जाति वाली बात पर अड़े हुए थे लेकिन बाद में उनकी इच्छा के आगे झुक गए।

सिंह ने आदित्य फोगाट जो कि अब उनके पति हैं, उनको हां बोलने तक कम से कम 10 लड़कों से मुलाकात की थी। दोनों ने मुलाकात के 10 महीने के भीतर शादी कर ली थी लेकिन एक-दूसरे से प्यार होने के बाद ही।

जहां “भारतीय जोड़ी मिलान’’ अब भी अरेंज शादियों से जुड़ी पुरानी परंपराओं का आइना ही है, वहीं जिन लोगों ने इस तरीके से हमसफर ढूंढ़ने को तवज्जो दी, उनका मानना है कि समय के साथ इन परंपराओं और तरीकों में कुछ बदलाव भी आए हैं।

कई पुरुषों के लिए, अब पत्नी “मेरी मां जैसी होनी चाहिए’’ वाले विचार से बदलकर ऐसे हमसफर की तलाश हो गई है जो सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उनके बराबर हों।

परंपरा और आधुनिकता के बीच के अंतर को समझकर अपना रास्ता निकालने वाले लोगों का मनना है कि भावनात्मक और बौद्धिक मिलान, जाति जैसे सामाजिक कारकों से ऊपर है और एक जैसे लक्ष्य या आकांक्षाएं होना रंग-रूप और कद-काठी से ज्यादा जरूरी हैं।

वायकॉम 18 द्वारा 2020 में किया गया एक सर्वेक्षण दिखाता है कि 400 भारतीय शहरों के 25 हजार से ज्यादा युवाओं में से 60 प्रतिशत ने कहा है कि उन्हें अरेंज विवाह ‘‘स्वीकार्य” है।

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