नयी दिल्ली, 10 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें राज्यपाल पर राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाया गया है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया और मामले में अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से सहायता मांगी।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 नवंबर की तारीख तय की।
तमिलनाडु सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने बताया कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित 12 विधेयक राज्यपाल आरएन रवि के कार्यालय में लंबित हैं।
तमिलनाडु सरकार ने शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप करने का आग्रह करते हुए आरोप लगाया ‘‘एक संवैधानिक प्राधिकरण लगातार असंवैधानिक तरीके से काम कर रहा है और बाहरी कारणों के चलते राज्य सरकार के कामकाज में बाधा डाल रहा है।’’
राज्य सरकार ने कहा, ‘‘घोषणा करें कि तमिलनाडु के राज्यपाल/प्रथम प्रतिवादी द्वारा तमिलनाडु राज्य विधानमंडल द्वारा पारित एवं अग्रेषित विधेयकों पर विचार करने और मंजूरी देने के संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने में निष्क्रियता, चूक, देरी और विफलता तथा और राज्य सरकार द्वारा उनके हस्ताक्षर के लिए भेजी गई फाइलों, सरकारी आदेशों व नीतियों पर विचार न करना असंवैधानिक, अवैध, मनमाना और अनुचित होने के साथ ही सत्ता का दुर्भावनापूर्ण इस्तेमाल भी है।”
उसने कहा कि राज्यपाल, ‘‘छूट आदेशों, दिन-प्रतिदिन की फाइलों, नियुक्ति आदेशों पर हस्ताक्षर नहीं करके, भर्ती आदेशों को मंजूरी न देकर, भ्रष्टाचार में शामिल मंत्रियों, विधायकों पर मुकदमा चलाने की स्वीकृति न देकर, जिसमें शीर्ष अदालत द्वारा जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करना शामिल है और तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को मंजूरी न देकर पूरे प्रशासन को ठप कर रहे हैं। वह राज्य प्रशासन के साथ सहयोग न करके प्रतिकूल रवैया पैदा कर रहे हैं।”
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)