मुंबई, तीन मार्च : बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि वह जुलाई 2005 की बाढ़ को नहीं भूल सकता जब मीठी नदी के तट पर अवैध निर्माण के कारण मुंबई लगभग पूरी तरह जलमग्न हो गई थी और व्यापक पैमाने पर नुकसान हुआ था. न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने कहा कि जनता का हित उसे एक वेलफेयर सोसाइटी को कोई बड़ी राहत देने की अनुमति नहीं देगा जिसने प्रस्तावित मीठी नदी सुधार परियोजना के खिलाफ याचिका दायर की है. पीठ ने 29 फरवरी को आशियाना वेलफेयर सोसाइटी और समीर अहमद चौधरी की दो याचिकाओं पर सुनवाई की थी, जिन्होंने मीठी नदी के आसपास के क्षेत्र के पुनरुद्धार के लिए प्रस्तावित बुनियादी ढांचा परियोजना से प्रभावित होने का दावा किया है. याचिकाओं में सोसाइटी की संरचनाओं को गिराने पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है.
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘जनता की याददाश्त कमजोर हो सकती है लेकिन यह इतनी भी कमजोर नहीं हो सकती कि शहर जुलाई 2005 के उस समय को पूरी तरह भूल जाए, जब यह लगभग पूरी तरह पानी में डूब गया था और सबसे ज्यादा प्रभावित हिस्सों में से एक मीठी नदी खासतौर से उसका मुहाना था.’’ इसने कहा कि काफी नुकसान हुआ था और ज्यादातर नुकसान मीठी नदी के तट पर अवैध निर्माण के कारण हुआ था. अदालत ने कहा कि जनता का हित उसे याचिकाकर्ताओं को ज्यादा राहत देने की अनुमति नहीं देगा खासतौर से जब एक पुनर्वास नीति मौजूद हो जिसका उच्च न्यायालय उल्लेख करेगा. यह भी पढ़ें :PM Modi Kashmir Visits: पीएम मोदी के कश्मीर दौरे से पहले सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद
उच्च न्यायालय ने कहा कि वह 13 मार्च को याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, तब तक संरचनाओं के खिलाफ कोई बलपूर्वक कार्रवाई न करने के पहले का आदेश जारी रहेगा. बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के अनुसार, इस परियोजना में मीठी नदी पर ‘रिटेनिंग’ दीवार और 12 मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण तथा उसका चौड़ीकरण शामिल है. मुंबई में 26 जुलाई 2005 को अभूतपूर्व बारिश के कारण मीठी नदी का तटबंध टूटने से शहर में बाढ़ आ गई थी. शहर के कुछ सबसे घनी आबादी वाले इलाके जलमग्न हो गए थे और कई लोगों की जान चली गई थी.