Who is Sanjay Singh? कौन हैं WFI अध्यक्ष संजय सिंह जिनकी वजह से साक्षी मलिक ने छोड़ दी कुश्ती, जानें क्या है पुरा विवाद

निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के विश्वासपात्र संजय सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के कई बार लंबित हुए चुनावों में गुरुवार को यहां अध्यक्ष पद पर आसान जीत दर्ज करने में सफल रहे। उनके पैनल ने 15 में से 13 पद पर जीत दर्ज की.

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नई दिल्ली, 21 दिसंबर: निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के विश्वासपात्र संजय सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के कई बार लंबित हुए चुनावों में गुरुवार को यहां अध्यक्ष पद पर आसान जीत दर्ज करने में सफल रहे. उनके पैनल ने 15 में से 13 पद पर जीत दर्ज की.

चुनावों के नतीजों ने प्रदर्शनकारी पहलवानों को काफी निराश किया और ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक ने खेल से संन्यास लेने का फैसला किया. I Quit Wrestling: साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ने का किया ऐलान, संजय सिंह के WFI चीफ बनने पर भड़की महिला पहलवान

उत्तर प्रदेश कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष संजय को 40 जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी और राष्ट्रमंडल खेलों की पूर्व स्वर्ण पदक विजेता अनिता श्योराण को सिर्फ सात मत मिले. आरएसएस से जुड़े संजय वाराणसी के रहने वाले हैं और बृजभूषण के बहुत करीबी सहयोगी हैं. निवर्तमान प्रमुख की खेल में जबरदस्त रुचि को देखते हुए यह उम्मीद है कि संजय नीतिगत निर्णयों में उनसे सलाह लेंगे.

संजय ने चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह देश के हजारों पहलवानों की जीत है जिन्हें पिछले सात से आठ महीनों में नुकसान उठाना पड़ा है.’’ महासंघ के अंदर चल रही राजनीति के बारे में पूछे जाने उन्होंने कहा, ‘‘हम राजनीति का जवाब राजनीति और कुश्ती का जवाब कुश्ती से देंगे.’’

अनिता का पैनल हालांकि महासचिव पद अपने नाम करने में सफल रहा जब प्रेम चंद लोचब ने दर्शन लाल को हराया. रेलवे खेल संवर्धन बोर्ड के पूर्व सचिव लोचब ने 27-19 से जीत दर्ज की. राष्ट्रीय राजमार्ग पर ‘फूड ज्वाइंट्स की चेन’ चलाने वाले और प्रदर्शनकारी पहलवानों के करीबी माने जाने वाले देवेंद्र सिंह कादियान ने आईडी नानावटी को 32-15 से हराकर वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया.

अनिता के पैनल के इन दो उम्मीदवारों की जीत से संकेत मिलते हैं कि संभवत: किसी तरह का समझौता हुआ होगा क्योंकि संजय ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की जबकि इन दो पद के चुनाव में वोट बंट गए. चुनावों के नतीजों के बाद उम्मीद के मुताबिक डब्ल्यूएफआई कार्यालय में उत्सव का माहौल था और बृजभूषण के समर्थक जीत के नारे लगा रहे थे.

डब्ल्यूएफआई का कार्यालय भाजपा सांसद बृजभूषण के बंगले में है और वहां ‘संजय भैया क्या लेकर चले, बृजभूषण की खड़ाऊ लेकर चले’ जैसे नारे सुनने को मिले. संजय के पैनल ने उपाध्यक्ष के चारों पद अपने नाम किए जिसमें दिल्ली के जय प्रकाश (37), पश्चिम बंगाल के असित कुमार साहा (42), पंजाब के करतार सिंह (44) और मणिपुर के एन फोनी (38) ने जीत हासिल की.

बृजभूषण के गुट के सत्यपाल सिंह देसवाल नए कोषाध्यक्ष होंगे. उत्तराखंड के देसवाल ने जम्मू-कश्मीर के दुष्यंत शर्मा को 34-12 से हराया. कार्यकारी समिति के पांचों सदस्य भी निवर्तमान अध्यक्ष के गुट से हैं. मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री मोहन यादव को उपाध्यक्ष चुनाव में सिर्फ पांच मत मिले. वह चुनाव के लिए नहीं आए.

डब्ल्यूएफआई कार्यालय से एक किमी से भी कम की दूरी पर देश के शीर्ष पहलवानों बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट और साक्षी ने मीडिया से बात करते हुए डब्ल्यूएफआई चुनावों के नतीजों पर निराशा जताई. चुनावों के नतीजों के बिरोध में साक्षी ने कुश्ती से संन्यास लेने का फैसला किया. यह बात अलग है कि वह पिछले कुछ समय से जूझ रहीं थी और उन्हें युवा पहलवान सोनम मलिक के खिलाफ ट्रायल में कई बार हार का सामना करना पड़ा.

ये तीनों पहलवान बृजभूषण के खिलाफ विरोध का चेहरा थे जिन पर उन्होंने जूनियर पहलवानों सहित कई महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. साक्षी ने कहा, ‘‘हमने दिल से लड़ाई लड़ी लेकिन अगर बृजभूषण जैसा आदमी, उसका व्यावसायिक साझेदार और करीबी सहयोगी डब्ल्यूएफआई का अध्यक्ष चुना गया है तो मैं कुश्ती छोड़ती हूं. ’’

राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता 31 वर्षीय साक्षी ने कहा, ‘‘हम एक महिला अध्यक्ष चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ’’ चुनावों से पहले तोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता बजरंग पूनिया और साक्षी ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से बार-बार अनुरोध किया था कि बृजभूषण से जुड़े किसी भी व्यक्ति को डब्ल्यूएफआई के चुनाव लड़ने से रोका जाये. इसके बाद बृजभूषण के बेटे प्रतीक और उनके दामाद विशाल सिंह चुनाव में नहीं उतरे.

बजरंग ने कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार अपनी बात पर कायम नहीं रही कि बृजभूषण का कोई भी विश्वासपात्र डब्ल्यूएफआई के चुनाव नहीं लड़ेगा.’’ विनेश ने कहा, ‘‘उभरती हुई महिला पहलवानों को भी शोषण का सामना करना पड़ेगा.’’ बजरंग ने साथ ही कहा कि उन्हें नहीं पता कि वह अपना करियर जारी रखना चाहते हैं या नहीं.

बृजभूषण ने आश्वासन दिया कि कोई प्रतिशोध की राजनीति नहीं होगी और अगर विरोध करने वाले पहलवान कुश्ती जारी रखना चाहते हैं तो उनके साथ पूरी निष्पक्षता से व्यवहार किया जाएगा. जब बृजभूषण से पूछा गया कि क्या महासंघ उन पहलवानों का समर्थन करेगा जिन्होंने उनके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू किया था तो उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘‘कोई पक्षपात नहीं होगा. सभी को डब्ल्यूएफआई से समर्थन मिलेगा.''

उन्होंने आश्वासन दिया, ‘‘हमें खेल पर ध्यान देना है, ना कि पहलवानों की गलतियों पर. अगर उन्हें अपनी गलतियों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा तो महासंघ निष्पक्ष नहीं रहेगा.’’ शीर्ष पहलवान अपने विरोध के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों से भारी समर्थन जुटाने में कामयाब रहे थे. इनका विरोध हालांकि उस दिन विफल हो गया जब उन्होंने 28 मई को नए संसद भवन की ओर मार्च करने की योजना बनाई और दिल्ली पुलिस ने दंगा करने के लिए सभी प्रदर्शनकारियों को जंतर-मंतर से हटा दिया.

पहलवानों ने आधिकारिक तौर पर सात जून को अपना विरोध बंद कर दिया था जब खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने उन्हें आश्वासन दिया था कि बृजभूषण के परिवार के किसी भी सदस्य या करीबी सहयोगी को डब्ल्यूएफआई चुनाव में उतरने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

नई कार्यकारी परिषद के चुनाव से डब्ल्यूएफआई पर लगे वैश्विक संचालन संस्था यूनाईटेड वर्ल्ड रेस्लिंग (यूडब्ल्यूडब्ल्यू) के प्रतिबंध को हटाने का भी रास्ता साफ हो जाएगा. यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने समय पर चुनाव नहीं कराने के लिए डब्ल्यूएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया था जिससे भारतीय पहलवानों को 2023 विश्व चैंपियनशिप में तटस्थ खिलाड़ियों के रूप में प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

चुनाव प्रक्रिया जुलाई में शुरू हो गई थी लेकिन अदालत में विभिन्न मामलों के कारण इसमें देरी हुई. उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक को रद्द कर दिया जिससे डब्ल्यूएफआई की नई संचालन संस्था के चुनाव की प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त हो गया.

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