भोपाल, 4 नवंबर : भोपाल पिछले तीन दशक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गढ़ में तब्दील हो गया है, लेकिन इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ दल इसे हल्के में नहीं ले सकता क्योंकि कांग्रेस ने पिछली बार राज्य की राजधानी में सात में से तीन सीट जीतकर उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था. भोपाल जिले में सात विधानसभा सीट हैं, जिनमें से छह शहर के भीतर हैं. भोपाल दक्षिण-पश्चिम, भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य और नरेला शहरी सीट हैं, हुज़ूर और गोविंदपुरा को अर्ध-शहरी और बैरसिया को ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है.
भाजपा ने 2018 में जिले में चार सीट जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने भाजपा से दो सीट भोपाल मध्य और भोपाल दक्षिण-पश्चिम छीनकर तीन सीट पर जीत हासिल की थी. शहर में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी हैं. यह 2018 में दो मुस्लिम विधायकों को विधानसभा में भेजने वाला मध्य प्रदेश का एकमात्र शहर था. इस चुनाव में भोपाल उत्तर से आरिफ अकील और भोपाल मध्य से आरिफ मसूद ने चुनाव जीता था. कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले भोपाल उत्तर में इस बार दिलचस्प सियासी जंग देखने को मिल रही है. यह 1990 के बाद पहला चुनाव है जब छह बार के विधायक आरिफ अकील स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ रहे और कांग्रेस ने उनकी जगह उनके बेटे आतिफ अकील को मैदान में उतारा है. यह भी पढ़ें : नए युग की तकनीक भारत को वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने में बना सकती है सक्षम
आरिफ यहां केवल एक बार 1993 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भाजपा उम्मीदवार से हारे थे, लेकिन उनके बेटे के लिए जीतना आसान नहीं होगा क्योंकि उनके चाचा - आरिफ के भाई - आमिर अकील और कांग्रेस के एक अन्य बागी नासिर इस्लाम भी इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. आमिर अकील ने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘मैंने 30 वर्ष तक यहां के लोगों की सेवा की है, उनके कठिन समय में उनके साथ खड़ा रहा हूं. इन लोगों ने अब मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा है.’’