नयी दिल्ली, 27 फरवरी ‘मिशन ईस्ट’ हासिल कर पश्चिम बंगाल में अपनी वैचारिक जीत तथा दक्षिण में कर्नाटक के पार अपनी पहुंच बढ़ाने को लेकर आशान्वित भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनावों की काफी अहमियत है।
भाजपा नेता महसूस करते हैं कि इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन हाल ही में पेश किये बजट के सुधारवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिहाज से पार्टी के लिए उत्साहवर्धक होगा।
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की लड़ाई भाजपा के लिए एक बड़ा दांव है और उसके मुख्य रणनीतिकार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह स्वयं ही चीजों को देख रहे हैं तथा उन्होंने 294 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी के लिए 200 से अधिक सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया है।
बंगाल में भाजपा की संभावना का जिक्र करते हुए सह प्रभारी सुनील मेनन ने कहा कि पार्टी ने जब 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 42 में से 18 सीटें जीती थीं और दो सीटें महज मामूली अंतर से हार गयी थी तब उसने करीब 125 विधानसभा क्षेत्रों में दर्ज दर्ज की थी।
उन्होंने कहा, ‘‘ भाजपा ने 2019 के आम चुनाव में 41 फीसद वोट हासिल किया था और हर रोज राज्य में वह अपनी स्थिति सुधारती जा रही है एवं वह विधानसभा चुनाव में विजेता बनकर उभरेगी। ’’
उन्होंने कहा कि यह पार्टी की केवल चुनावी नहीं बल्कि वैचारिक जीत होगी।
पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में भाजपा की या तो अपनी सरकार है या वह अन्य दलों के साथ सत्तासीन है। उसे असम में फिर सत्ता में लौटने का विश्वास है क्योंकि कांग्रेस को 15 साल तक राज्य पर शासन करने वाले तरूण गोगोई की कमी खलेगी।
वर्ष 2019 के आम चुनाव में पश्चिमोत्तर हिस्से में अपनी धाक जमा चुकी भाजपा की नजर पूर्व और दक्षिण की राज्यों पर टिकी है।
पुडुचेरी में कांग्रेस सरकार के गिर जाने के बाद भाजपा अपनी सहयोगी ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के साथ मिलकर दक्षिण में कर्नाटक के बाद एक और मोर्चा खोलने को लेकर विश्वास से लबरेज है।
पुड्डुचेरी के पार्टी मामलों के प्रभारी वरिष्ठ भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने दावा किया, ‘‘ पुडुचेरी के लोग कांग्रेस के भ्रष्टाचार एवं कुशासन से आजिज आ गये हैं। वे मोदी सरकार का सुशासन चाहते हैं।...’’
वैसे असम और पश्चिम बंगाल छोड़कर भाजपा के पास खासकर तमिलनाडु एवं केरल में गंवाने के लिए कुछ नहीं है। पार्टी इन दोनों राज्यों में अपना पैर पसारने के लिए प्रयासरत है।
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