नयी दिल्ली, 11 जून राज्य विधानसभाओं में भाजपा की स्थिति को देखकर अनुमान लगाया जा रहा था कि पार्टी राज्यसभा की 57 सीटों के लिए हुए द्विवार्षिक चुनावों में 24 सीट में से केवल 20 सीट को ही बरकरार रख पाएगी, लेकिन शनिवार को चुनावी प्रक्रिया खत्म होने के साथ उसने 22 सीटों पर जीत हासिल कर ली। विपक्षी खेमे के अलग-अलग दलों के विधायकों के बीच आपसी खींचतान के कारण भाजपा एक निर्दलीय की जीत भी सुनिश्चित कराने में कामयाब रही।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन की बदौलत राष्ट्रपति चुनाव से पहले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को मजबूती मिली है और यह उसके प्रतिद्वंद्वियों के लिए एक झटका है क्योंकि राज्यसभा चुनावों ने फिर से महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक और हरियाणा तक विपक्षी दलों में व्याप्त असंतोष और एकजुटता की कमी को उजागर किया है।
राजस्थान के अलावा इन राज्यों में निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन करके या अपने स्वयं के उम्मीदवारों को उतारकर अपने प्रतिद्वंद्वियों के बीच मतभेद से भाजपा ने लाभ उठाया है क्योंकि पार्टी ने राजस्थान को छोड़कर सभी राज्यों में एक-एक अतिरिक्त सीट हासिल की।
हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत न केवल अपने समर्थक विधायकों को एकजुट रखने में कामयाब रहे बल्कि निर्दलीय, निवर्तमान सांसद और मीडिया उद्यमी सुभाष चंद्रा के पक्ष में वोट जुटाने के भाजपा के अभियान को उन्होंने नाकाम कर दिया।
भाजपा के सूत्रों ने कहा कि पार्टी चुनाव के नतीजे से खुश है, खासकर महाराष्ट्र में जहां शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस के सत्तारूढ़ महा विकास आघाड़ी को सत्ता में रहने के बावजूद झटका लगा, क्योंकि भाजपा छह में से तीन सीट जीत गई। भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी इस परिणाम से मजबूती मिली है।
भाजपा ने कर्नाटक में चार में से तीन सीट पर जीत दर्ज की क्योंकि प्रतिद्वंद्वी दल कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके और अलग-अलग लड़े तथा हार गए।
हरियाणा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी के उम्मीदवार अजय माकन के हारने से झटका लगा। कांग्रेस के विधायक कुलदीप बिश्नोई ने भाजपा समर्थित निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा को वोट दिया और एक अन्य विधायक का वोट अमान्य हो गया।
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