नयी दिल्ली, 27 अप्रैल समलैंगिक विवाह को वैधानिक मान्यता देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय को बृहस्पतिवार को केंद्र ने कहा कि सगे-संबंधियों से यौनाचार निषेध को चुनौती देने के लिए यौन अभिरुचि की स्वतंत्रता और स्वायत्तता के बारे में भविष्य की दलीलें दी जा सकती हैं।
केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि अनाचार दुनिया में असामान्य नहीं है, लेकिन हर जगह प्रतिबंधित है।
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अलहदा रूप में यौन अभिरुचि या स्वायत्तता का उपयोग विवाह के सभी पहलुओं में कभी नहीं किया जा सकता है जिसके आधार पर विवाह को रद्द किया जा सकता है। इन पहलुओं में विवाह करना और निषिद्ध संबंधों में प्रवेश शामिल है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह सभी कानून के नियमों के अधीन हैं।
मेहता ने पीठ से कहा, “मैं जिम्मेदारी की भावना के साथ कह रहा हूं, भले इसे स्वीकार किया जाये या नहीं, यह अलग बात है, लेकिन अनाचार निषेध को भी चुनौती देने के लिए दलीलें दी जा सकती हैं।”
पीठ में न्यायमूर्ति एस. के. कौल, न्यायमूर्ति एस. आर. भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा भी शामिल हैं।
उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 2(बी) का उल्लेख किया जो निषिद्ध संबंधों की सीमा के बारे में बात करती है।
मेहता ने कहा कि एक क़ानून को किसी वर्ग के लिए 'ए' और कुछ वर्ग के लिए 'बी' के अर्थ में नहीं पढ़ा जा सकता है।
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