नयी दिल्ली, तीन जून दिल्ली उच्च न्यायालय में एक आवेदन में कोविड-19 से बचाव के लिए तैयार टीके कोवैक्सिन का दो से 18 वर्ष आयुवर्ग पर हो रहे दूसरे एवं तीसरे चरण के चिकित्सकीय परीक्षण को रोकने का अनुरोध किया गया है।
भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) द्वारा भारत बायोटेक को बच्चों पर टीके का परीक्षण करने के लिये दी गई अनुमति रद्द करने के लिए दायर याचिका में यह आवेदन दाखिल किया गया है।
याचिकाकर्ता संजीव कुमार ने अपने आवेदन में दावा किया है कि मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है और केंद्र एवं भारत बायोटेक को नोटिस जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई जून महीने में शुरू हो गई है।
उन्होंने कहा कि चूंकी अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान फैसले पर रोक नहीं लगाई, इसलिए सरकार परीक्षण पर आगे बढ़ रही है।
कुमार ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई को होनी है, ऐसी स्थिति में सरकार कह सकती है कि परीक्षण शुरू हो चुके हैं और ऐसे में डीसीजीआई की अनुमति को चुनौती देने वाली याचिका अब निष्प्रभावी हो गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 525 स्वस्थ स्वयंसेवकों पर टीके का परीक्षण किया जाएगा और उन्हें मांसपेशियों के जरिये दो खुराक (पहली खुराक के 28वें दिन दूसरी खुराक) दी जाएगी।
कोवैक्सिन स्वदेशी टीका है जिसे भारत बायोटेक ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर विकसित किया है और भारत में चल रहे वयस्कों के टीकाकरण अभियान में इस टीके का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कुमार ने अपनी मुख्य याचिका में आशंका जताई है कि परीक्षण में शामिल होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य और मानसिक सेहत पर टीके के परीक्षण का दुष्प्रभाव पड़ सकता है।
उन्होंने दावा किया कि परीक्षण में शामिल होने वाले बच्चों को स्वयंसेवक नहीं माना जा सकता क्योंकि वे परीक्षण के दुष्प्रभाव को समझ नहीं सकते और साथ ही इसके बारे में सहमति नहीं दे सकते।
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि स्वस्थ बच्चों पर परीक्षण ‘ मानव वध’ के सामान है और परीक्षण में शामिल किसी बच्चे के ‘‘शांतिपूर्ण और आनंदपूर्ण जीवन में’ किसी तरह का खलल पड़ने पर ऐसे परीक्षण में शामिल या अनुमति देने वालों के खिलाफ आपराधिक मामला चलाया जाना चाहिए।
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