ताजा खबरें | हंगामे और शोर शराबे के बीच ‘शेर ओ शायरी’ से राज्यसभा का माहौल बना खुशनुमा

नयी दिल्ली, 24 मार्च बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत से ही बाधित हो रही राज्यसभा की कार्यवाही के सिलसिले के बीच शुक्रवार को उच्च सदन में कुछ दौर ‘‘शेर ओ शायरी’’ का चला, जिसकी वजह से सदन में हंसी-ठहाकों से माहौल खुशनुमा रहा।

साथ ही कुछ सदस्यों ने एक-दूसरे पर कटाक्ष करने का मौका भी नहीं गंवाया। हालांकि इसके थोड़ी ही देर बाद शोरगुल और हंगामे की वजह से सदन कार्यवाही एक बार फिर बाधित हुई और बैठक को दोपहर ढाई बजे तक स्थगित कर दिया गया।

शेर ओ शायरी के दौर की शुरुआत आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर पेश करने के दौरान केंद्रीय मंत्री दर्शना जरदोश की अनुपस्थिति को लेकर हुई।

जरदोश की अनुपस्थिति पर सभापति जगदीप धनखड़ ने आपत्ति जताते हुए सदन के नेता पीयूष गोयल से कहा कि उन्हें ऐसे मौकों पर मंत्रियों की उपस्थिति सुनिश्चित करनी चाहिए और यदि सदस्य मौजूद नहीं है तो इसकी पूर्व सूचना आसन को दी जानी चाहिए।

गोयल ने इस पर खेद जताया। इसी दौरान कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने कुछ आपत्ति दर्ज की।

उनकी आपत्ति पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए गोयल ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में खेद प्रकट किया है और मंत्री ने भी माफी मांगी है।

उन्होंने कहा, ‘‘दुख की बात है कि उनका बड़ा दिल नहीं है।’’

सभापति ने इस पर कहा कि सदन में वह हाजिरजवाबी, वह हास्य और वह व्यंग्य कहां है, जिन्हें हम साझा नहीं कर रहे हैं।

इसके बाद धनखड़ ने अपने ही अंदाज में सदस्यों को यह शेर सुनाया:-

‘‘ताकत अपने लफ्जों में डालो, आवाज में नहीं।

क्योंकि फसल बारिश से उगती है, बाढ़ से नहीं।’’

धनखड़ के इस शेर पर सदस्यों ने वाह-वाह की। किसी सदस्य ने ताली बजाई तो किसी ने मेज थपथपाकर अपनी प्रतिक्रिया का इजहार किया।

हालांकि पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के सदस्य और राज्यसभा में पार्टी के नेता डेरेक ओब्रायन को यह शायरी समझ नहीं आई।

इस पर, सभापति ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह उनके लिए इसका अनुवाद कर देंगे।

बात यहीं नहीं रूकी। सदन में बोलने का कोई मौका ना छोड़ने वाले और अक्सर शेर ओ शायरी के अंदाज में सत्ता पक्ष पर पलटवार करने वाले विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे भी चुप नहीं रहे।

उन्होंने कहा, ‘‘ये तो ठीक है साहब लेकिन जब सूखा पड़ता है तो हंसने का सवाल ही नहीं होता।’’

हंसी और ठहांकों के बीच सभापति उनकी बात सुन नहीं पाए।

सभापति के आग्रह पर खरगे ने अपनी बात दोहराते हुए कहा, ‘‘जब सूखा पड़ता है तो हंसता कौन है? अब पूरे सदन में सूखा पड़ा है और कोई बात करने का तैयार नहीं है... तो ये होता है।’’

ऐसे में सदन के नेता गोयल कैसे चुप रहते?

उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज में कहा, ‘‘सूखा पड़े या बाढ़ आए, यह तो विधाता के हाथ में है। हमारे हाथ में नहीं है। लेकिन जब हमारे हाथ में कुछ चीजें होती हैं... कम से कम उसमें तो हम सूखा ना पड़ने दें। उसमें तो बारिश आए।’’

अब बारी थी सभापति धनखड़ की और लगे हाथ उन्होंने एक और शेर पढ़ा। हालांकि इससे पहले उन्होंने सदस्यों को स्पष्ट किया था कि वह कोई शायर नहीं है।

उन्होंने कहा:-

‘‘इतना मत बोलो कि लोग चुप होने का इंतजार करें।

इतना बोलकर चुप हो कि लोग दोबारा बोलने का इंतजार करें।।’’

इसके बाद सभापति ने विभिन्न समितियों की रिपोर्ट रखवाई और विभिन्न सदस्यों की ओर से नियम 267 के तहत दिए गए नोटिस का उल्लेख किया।

इसी के साथ सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया। हंगामा थमते न देख सभापति ने यह कहते हुए कार्यवाही ढाई बजे तक के लिए स्थगित कर दी कि ‘‘सदन में व्यवस्था नहीं है’’।

ब्रजेन्द्र माधव

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