नयी दिल्ली, सात जुलाई उच्चतम न्यायालय, ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ कथित तौर पर धार्मिक भावनाएं भड़काने के लिए उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में दर्ज एक मामले के संबंध में, उनकी जमानत याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की अवकाशकालीन पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश की मंजूरी के बाद मामले को शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
जुबैर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्जाल्विस ने सुनवाई के दौरान कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी और इसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया।
उन्होंने कहा कि जुबैर ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक हैं और उनका काम समाचारों के तथ्यों की जांच करना है और वह नफरत भरे भाषणों की पहचान करने के लिए अपनी भूमिका निभा रहे थे।
उन्होंने पीठ से मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध करते हुए कहा, "प्राथमिकी पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि कोई अपराध नहीं हुआ है, लेकिन उनकी जान को खतरा है क्योंकि वहां के लोग उन्हें धमकी दे रहे हैं।"
हिंदू शेर सेना सीतापुर के जिलाध्यक्ष भगवान शरण द्वारा एक जून को भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-67 के तहत जुबैर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
दिल्ली पुलिस ने जुबैर को अपने एक ट्वीट के जरिए धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में 27 जून को गिरफ्तार किया था।
दिल्ली पुलिस ने जुबैर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120 बी (आपराधिक साजिश) और 201 (सबूत नष्ट करना) तथा विदेशी चंदा (विनियमन) कानून की धारा 35 के तहत भी आरोप लगाए हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 10 जून के आदेश के खिलाफ जुबैर की अपील अधिवक्ता सत्य मित्र के जरिए दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि यह अपराधियों के साथ ही घृणा अपराधों की निगरानी व विरोध करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए एक नयी पुलिस रणनीति है।
जुबैर ने सीतापुर में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध करते हुए कहा कि इसके लिए एक उपयुक्त आधार है। याचिका में सीतापुर प्राथमिकी में जांच पर रोक लगाने और उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि वह याचिकाकर्ता पर मुकदमा नहीं चलाए और न ही गिरफ्तार करे।
याचिका में कहा गया है, "जो लोग नफरत फैलाने वाली में लिप्त हैं, वे काफी संख्या में हैं। वे अच्छी तरह से संगठित हैं। वे उन धर्मनिरपेक्ष लोगों की पहचान करने वाले एक समूह के तौर पर काम करते हैं जो नफरत फैलाने वाली के खिलाफ बोलते हैं...।’’
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